सोनू - जया भराडे बडोदकर

 
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utkarshexpress.com - दो भाई थे सोनू और मोनू। सोनू बडा आठ साल का और मोनू पाच साल का था। 
माँ घरों में काम करती। 
सोनू बडा समझदार था अपने मोनू को लेकर माँ के पीछे-पीछे घूमता रहता। 
कोरोना के बाद से ही माँ कमजोर हो गई थी। फिर भी कोई उपाय नहीं था। 
सोनू खेल-खेल में मोनू से हार जाया करता तो मोनू बहुत खुश हो जाता था। 
धीरे धीरे सोनू को समझ आने लगी थी कि बिमार माँ बहुत काम कर रही है। पर वह कुछ नहीं कर पाता। 
एक दिन माँ ने दम तोड़ दिया। अब लाचार सोनू माँ के काम करने लगा। मोनू के साथ खेल नहीं पाता। कुछ दिन बाद एक जज साहब के यहाँ सोनू को पूरा काम मिल गया। जज साहब  सोनू से बहुत खुश ने। जज साहब ने सोनू के कहने पर मोनू को सकूल में डाल दिया था। और एक दिन मोनू सैनिक बन गया। सोनू अभी भी जज साहब के साथ साथ काम करता था। जज साहब के अहसान को वह दिल से मानता ना। मोनू सैनिक जो था सोनू से मिलने कमी कभी आता धा। सोनू ने अपना जीवन मोनू को सैनिक बनाने में लगा दिया था, जज साहब के परिवार में दो बेटे थै वो अब विदेश में जा के बस गऐ धे,। एक दिन जज साहब बहुत बीमार पड गए सोनू ने उनकी बहुत सेवा की पर जज साहब बच न सके। उनकी पत्नी को सोनू ने बहुत ढाढस बंधाया दोनों बेटों ने आकर उनका अंतिम संस्कार किया और जाने के समय माँ को साथ ले जाने की बातें करने लगे। तो जज साहब की पत्नी ने उन्हें साफ मना कर दिया की अब वह अकेली नहीं है वह अपने असली बेटे सोनू के साथ ही रहेगी। कयोकि मरने के पहले जज साहब ने अपनी सारी जायदाद सोनू के नाम कर दी धी। सोनू की ईमानदारी मोनू के लिए आजीवन त्याग की भावना ने जज साहब का मन जीत लिया था। 
- जया भराडे बडोदकर, टाटा सेरीन,ठाने वेस्ट, महाराष्ट्र 

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