मेरी कलम से - क्षमा कौशिक

 
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मधुमास - 
वासंती परिधान में
ओढ़े पीला पाग।
आ पहुंचा मधुमास सखी
पुष्प धनुष शर हाथ।
मादक मादक गंध है,
कोकिल रही पुकार।
कली कली को चूमता,
भ्रमर करे गुंजार।
जीवन में उल्लास रहे,
वासंतिक चहुं ओर।
पीड़ा न उद्वेग हो,
खुशियां चारों ओर।
रंग - 
कंचन नभ में फैल रहा,
लिए लालिमा रंग।
तन मन ऐसे रम गया,
ज्यों पानी में रंग।
पाना फिर क्या शेष है,
जब हो अनंत का संग।
सतरंगी मन हो गया
जब मिले रंग से रंग।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड

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