मेरी कलम से - क्षमा कौशिक
Fri, 13 Jan 2023

मिले जो प्यार अपनों से वही पूंजी है जीवन की,
ये धन दौलत,झूठी शान बस तृष्णा है मानव की।
कमाई प्रेम की दौलत वही बस साथ जायेगी
माया तो छला करती है छलकर तब भी जायेगी।
कहीं तो गिर रहा है हिम हवा ठंडी चली है,
ओढ़ कोहरे की चादर को दिशाएं सो रही हैं।
कोकिले मौन है, पंछी नहीं उड़ते मुंडेरों पर,
कली गुमसुम, नही आती धूप रंगने गुलाबों को।
- डा० क्षमा कौशिक, जीएमएस रोड, देहरादून