मेरी कलम से - क्षमा कौशिक

सी सी करती बीत रही सर्दी की राते,
ठौर ठिकाना नहीं सड़क पर कटती रातें
साथ निभाते हैं अलाव कुछ देर तलक ही,
अपनी ही ऊष्मा से जीवन को हैं साधे।
उनके प्रति हम में भी कुछ संवेदन जागे
कुछ ऊष्मा अपने संसाधन से हम बांटे।
रात की चादर अभी उतरी नही है
तिमिर पसरा है सुबह जागी नहीं है
है अकेला चांद तारे भी नहीं हैं
रात्रि की गोदी में छिपकर सो रहे हैं
तरु लताएं पात सिमटे से खड़े हैं
सूर्य के आने की आहट सुन रहे हैं
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड
सी सी करती बीत रही सर्दी की राते,
ठौर ठिकाना नहीं सड़क पर कटती रातें
साथ निभाते हैं अलाव कुछ देर तलक ही,
अपनी ही ऊष्मा से जीवन को हैं साधे।
उनके प्रति हम में भी कुछ संवेदन जागे
कुछ ऊष्मा अपने संसाधन से हम बांटे।
रात की चादर अभी उतरी नही है
तिमिर पसरा है सुबह जागी नहीं है
है अकेला चांद तारे भी नहीं हैं
रात्रि की गोदी में छिपकर सो रहे हैं
तरु लताएं पात सिमटे से खड़े हैं
सूर्य के आने की आहट सुन रहे हैं
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड