फँसी गले में फांस - डॉo सत्यवान सौरभ

 
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रोपे थे इक शख्स ने, पौधे सालों साल।
बैठे छाया इसलिए, होकर आज निहाल।।

अपने ही देते दगा, समझो सौरभ व्यूह। 
फँसा अभिमन्यु मारते, होकर एक समूह।।

बात करें जो दोहरी, कर्म करें संगीन।
होती है अब जिन्दगी, उनकी ही रंगीन।।

जीते जी खुद झेलनी, फँसी गले में फांस।  
देता कंधा कौन है, जब तक चलती सांस।। 

उनकी कर तू साधना, अर्पण कर मन-फूल।  
खड़े रहे जो साथ जब, समय रहा प्रतिकूल।।

होते सौरभ बाढ़ से, शुरू में मनमुटाव। 
आगे जितना ये बढ़ें, उतना हो फैलाव।।

कदम-कदम पर छल रचे, बिछे हुए है जाल।
बच पाए कैसे भला, अब सौरभ की खाल।।

डाले जो औलाद में, कर के भेद दरार। 
ऐसे माँ औ' बाप के, जीवन को धिक्कार।।
- डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045, मोबाइल 9466526148, 01255281381
 

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