पंजाब में कांग्रेस पर भारी पड़ती आपसी लड़ाई - सुभाष आनंद

 
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Utkarshexpress.com- ज्यों ज्यों देश में लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं,पंजाब में कांग्रेस की गुटबाजी बढ़ती जा रही है। पंजाब कांग्रेस कई गुटों में बंटी हुई है, लेकिन दिल्ली में कांग्रेस के बड़े नेता चुप्पी साधे हुए हैं। अमृतसर में कांग्रेस पार्टी की मीटिंग में जिस प्रकार कांग्रेसी आपस में उलझते देखे गए उससे लगता है कि पंजाब में कांग्रेस ही कांग्रेस को हराने के लिए मैदान में उतरेगी। अब ऐसा लगता है कि कांग्रेस में अंतर्कलह चरम सीमा पर पहुंच चुकी है।
कुछ कांग्रेसी भीतर ही भीतर कांग्रेस को पंक्चर करने में लगे हुए हैं।नवजोत सिंह सिद्धू जिस प्रकार रैलियों का आयोजन कर रहे हैं उससे कांग्रेस को कोई खास लाभ नहीं पहुंचता दिखाई दे रहा है और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष राजा वडि़ंग जिस प्रकार सरेआम उनकी आलोचना कर रहे है और रैलियों में भाग लेने वालों को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं उससे कांग्रेस पंजाब में कमजोर होती जा रही है। सिद्धू प्रदेश नेतृत्व को दरकिनार कर अपनी गतिविधियों को गति देने के मूड़ में जुटे हुए हैं। 
प्रताप सिंह बाजवा ने भी अनुशासन का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि पार्टी हाईकमान को चाहिए कि अनुशासनहीनता पर कार्रवाई करने का अधिकार प्रदेशाध्यक्ष को दे देना चाहिए। सिद्धू गुट को राजिंदर कौर भट्ठल और केपी सिंह का समर्थन मिल रहा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा,क्योंकि उस समय भी कांग्रेस की भीतरघात बढ़ती गई थी और कांग्रेस 77 सीटों में से 18 सीटों पर सिमट गई। 
 पंजाब कांग्रेस के  अध्यक्ष राजा वडि़ंग ने साफ कहा है कि जो पार्टी के हित में काम नहीं करेंगे,जो पार्टी के खिलाफ जाएंगे उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इस समय कांग्रेसी उसी डाल को काट रहे हैं जिस पर पूरी पंजाब कांग्रेस बैठी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार फिरोजपुर में कांग्रेस युवा चेहरे पर हिन्दू उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है,जबकि साथ लगते जिले फरीदकोट से कांग्रेसी चेहरे को बदलने की संभावनाएं बनी हुई है।
कांग्रेसी लोगों का कहना है कि यदि कांग्रेसी नेता इसी प्रकार लड़ते रहे तो खेल हाथों से निकल जाएगा,जिसका सीधा लाभ अन्य दलों को होगा। कांग्रेस हाईकमान मुश्किल में है क्योंकि वह अगर नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी से निकालते हैं तो इसका खामियाजा लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ेगा।जिनमें मात्र तीन महीने बचे हैं। नवजोत सिंह सिद्धू और राजा वडि़ंग में जो खींचतान का मैच चल रहा है उसका पहला राऊंड तो नवजोत सिद्धू के पक्ष में रहा है।
उधर,आम आदमी पार्टी के सत्ता काल में  नौजवानों पर ढाए जा रहे अत्याचारों और बदलाखोरी की राजनीति से पंजाब में हवाओं का रुख बदल रहा है। इस समय अकाली दल द्वारा  पंजाब बचाओ रैली भी निकाली जा रही है जिसे लोग व्यंग्य में  अकाली दल बचाओ रैली भी कह रहे हैं। पंजाब की कुल 13 लोकसभा सीटें है जिन में से 7 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है,यदि कांग्रेस को अपनी मौजूदा 7 सीटें कायम रखनी है तो कांग्रेस को एकता बनाए रखने पर ज्यादा जोर देना होगा। उधर कांग्रेस के नवनियुक्त आबजर्वर देवेंद्र यादव भी कांग्रेस की आपसी लड़ाई पर गहरी चिंता प्रगट कर चुके हैं। वैसे यदि समय रहते कांग्रेस गुटबाजी और अंदरूनी खींचतान पर रोक लगा सके तो लोकसभा चुनावों में उसे सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं क्योंकि यहां फिलहाल सत्ताधारी आम आदमी पार्टी जहां एंटीइंकंबेसी से जूझ रही है तो अकाली दल भी अपना जनाधार खोते दिखाई दे रहे हैं। (विभूति फीचर्स)

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