दिन गुजरते जाते - सुनील गुप्ता 

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दिन गुजरते जाते हैं,
और शामें कटती नहीं  !
उम्र फ़िसलती जाती है.....,
और हम बदलते नहीं  !!1!!

ज़िन्दगी यहां यूं ही चले
और हम भटकते रहे   !
पता नहीं कब दिन ये ढले....,
और हम उलझते रहे !!2!!

है ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा
देखो कितना अजीब  !
हैं हम स्वयं से ही ख़फ़ा....,
नहीं आए अपने करीब !!3!!

हर मोड़ पर आकर हम
यहां क्यों ठहर जाते   !
है विश्वास स्वयं में कम......,
तभी कदम हैं लड़खड़ाते !!4!!

है पास ये ज़िन्दगी
तब भी हैं यहां उदास  !
कर लो ज़रा बंदगी.....,
तृप्त होगी ये प्यास  !!5!!

क्यों ठुकराए यहां चलते हो
है जो भी तुम्हारे पास   !
वक़्त खींच लेगा इसे.....,
तब आएगी तुम्हें याद  !!6!!

है ये नसीब तुम्हारा कि
मिली है तुम्हें सौगात  !
मत भूलते चलना कभी....,
तुम अपनी यहां औकात !!7!!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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