बरसात से चहुँओर हाहाकार मचा - सुनील गुप्ता

 
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 ( 1 ) मचा 
हाहाकार अब चहुँओर,
और हुआ जन जीवन अस्त व्यस्त  !
नित बरस रहीं घनघोर घटाएं यहाँ पे सतत...,
जिसे देख हुआ जन मन सारा अवाक और पस्त !!

( 2 ) रचा 
खेल इंद्रदेव का,
अब दिखा रहा बर्बादी का मंज़र  !
सब गाँव शहर बनते चले गए दरिया जैसे..,
और मिला न बचने का ठौर, न ही कोई डगर !!

( 3 ) बचा 
न जीव-जंतु ,
इस अतिवर्षा की आफ़त मार से यहाँ पे  !
और निकल पड़े सभी छोड़के घरबार सामान पीछे...,
ताकि बच पाएं तो पुनः लौट आएंगे यहाँ फिरसे!!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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