मज़दूर हूं - सुनील गुप्ता

मज़दूर हूं, मज़दूरी करता
रहता काम की तलाश में !
गांव सड़क पे रहता हूं.......,
सोता रूखी सूखी खाकर रात में !!
जो मिल जाए, भाग्य समझता
रहता हूं खुश सदा ही !
क्या होता है पर्व उत्सव.....,
ये जान ना पाया कभी !!1!!
है मज़दूरी करना.काम ढूंढना
काम धर्म मेरा ही !
क्या देखूँ दिन रात यहां......
करता हूं बस मज़दूरी ही !!
परिवार पालना,रोटी कामना
है मेरी मज़बूरी !
कौन सुनें, मेरी व्यथा.....
काम की मिले ना पूरी मज़दूरी !!2!!
रहता हूं अक्सर
यहां पर बीमार !
है मेरी.....,
सूखी कृशकाया !!
पाता हूं मैं
बस इतनी पगार !
जिससे आधा ही....,
पेट भरपाया !!3!!
जीवन के कड़वे सच को
पीता हूं घूँट-घूँट यहां पर !.
बस किसी तरह से जी पाता.....,
मरता हूं तिल-तिल रोज यहां पर !!
बढ़ती महंगाई, घुटती ज़िन्दगी
जीत सका ना यहां पर !
नित खोदूँ कुआँ, प्यास बुझाऊं.....,
दम तोड़ता हूं, फिर भी यहां पर !!4!!
मज़दूरों की कोई सुन ले
हरले उनकी चिंताएं !
बस एक अर्ज़ यही है......,
जीते जी जलें ना उनकी चिताएं !!
हो उनके हक़ की पूरी रक्षा
मिले उनको सुख सुविधा !
पाएं वो भोजन आवास दवा....,
तब ही मिटेगी उनकी दुविधा !!5!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान