दुनिया बदल रही है - सुनील गुप्ता

(1)"दुनिया ", दुनिया बदल रही है
और हम कहां हैं खड़े !
बीती जा रही उमरिया....,
और हम जस के तस हैं बने !!
(2)"बदल ", बदल गयी सारी रवायतें
और रस्में सभी पुरानी !
पर, हम पे चढ़ा ये रंग.....,
सुना रहा है अपनी कहानी !!
(3)"रही ", रही मनोदशा पुरानी
और तेवर वही पुराने !
अपनों की देखकर दशा....,
याद आए हमें जमाने !!
(4)"है ", है ज़िन्दगी ठहरी-ठहरी
और रुकी-रुकी सी यहां !
बांधे हम अपनी गठरी......,
चले जा रहे हैं कहां !!
(5)" दुनिया बदल रही है ",
और हम देखते ही रहे !
बह रही बयार ए बदलाव ......,
और हम सोए पड़े रहे !!
(6) जगने जगाने का वक़्त
निकल चुका सारा !
जगा सके तो किस्मत.....,
अब भी जगा ले यारा !!
(7) "बदलाव की लहर ",
और आंधी चल रही !
जो पिछड़ गया यहां पर....,
उसे हार सता रही !!
(8) ज़िन्दगी देती नहीं मौका
और ना ही दोहराए इतिहास !
ना दें कभी स्वयं को धोखा......,
और करें बदलने का प्रयास !!
(9) " दुनिया बदल रही है ",
और बदल रही है सोच !
आज इंसान से इंसान.....,
दिख रहा खिंचा हर रोज !!
(10) बदलाव की इस दौड़ में
ना पीछे छूट जाए इंसानियत !
और धर्म कर्म की आड़ में....,
पार कर ना जाए हैवानियत !!
(11) बदलाव की हर एक दौड़
होती नहीं सदा ही अच्छी !
ना करें हम किसी से होड़.....,
और बनाएं चलें ज़िन्दगी अच्छी !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान