मैं मतवाला, चला अकेला -  सुनील गुप्ता 

 
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हूं मतवाला, चला अकेला
निकल पड़ा मस्ती में    !
चला देखते दुनिया का मेला......,
गाता अपनी धुन में  !!1!

हूं सीधा-साधा,भोला-भाला
फ़िक्र नहीं मुझे कल की   !
स्वयं को मैंने बदल ड़ाला....,,
करूँ सदा मैं मन की  !!2!!

वहम नहीं कोई अहम् ना पाला
रहा जैसे का तैसा     !
पीते चला जीवन की हाला.....,
रहा सरल विरल जैसा  !!3!!

स्वीकार करते, बढ़ते चला 
कभी पाली नहीं अपेक्षा  !
सहर्ष गले लगाता चला ......,
करी नहीं किसी की उपेक्षा  !!4!!

ना शिकवा ना कोई गिला
चला हँसते, माफ़ी देते   !
टूटा ना कभी ये सिलसिला....,
रहा खुशियाँ सदा बांटते !!5!!

गीत सुनाता यहां चला
रहा सदा ही गुनगुनाते    !
चला गूंथते जीवन की माला......,
हर्षाते और महकाते  !!6!!

जीवन डगर, पथरीला नाला
रहा सदा यहां चलते    !
सेतु बनाया, लोगों से मिला......,
मंज़िल पे पहुंचे सीधे  !!7!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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