तन्हाई मार गई - सुनील गुप्ता

 
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मार गई
मुझे मेरी तन्हाई
लगी डराने है अब परछाई  !
कहाँ जाऊँ, किसे मन व्यथा सुनाऊँ..,
और कैसे करूँ दूर यहाँ पे अपनी तन्हाई !!1!!

रात गई
नींद नहीं आई
उनींदी आँखें ठहर गई बन पथराई !
जाए बढ़ती नित्य बैचैनी हर पल......,
और कोई राह ना दिखे,सुध-बुध गंवाई !!2!!

बीत गई
बातें जो पुरानी
है उनकी कसक मन में है समाई  !
सुनाऊँ किसे दुःख भरी अपनी कहानी...,
और बीती स्मृतियाँ कचोटती चली हैं आई !!3!!

शाम गई
है रात छाई
रूठी मुझसे है किस्मत भाई  !
रहा घूरते अँधियारे में शून्य को.....,
और चहुँ ओर से दौड़े आई काटने तन्हाई !!4!!

मर गई
जीने की चाह
नहीं रास आए है तन्हाई   !
नित कम हो रही जीवन की तमन्नाएं...,
और अवसाद घटाएं घिर-घिर छाई आईं !!5!!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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