बहुत कुछ है - सुनीता मिश्रा

 
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लिखने को तो..
बहुत कुछ है। 
पर उससे क्या ?
तुम पढो तो 
कोई बात बने........!
सोचने को भी है बहुत ..
पर तुम समझो तो 
कोई बात बने........! 
मेरे चाहने मात्र से क्या ...?
तुम एहसास करो तो 
कोई बात बने........!                       
मैं चुप हूं तो क्या......?
तुम बोलो तो 
कोई बात बने.........!
मैं बेरंग हूं तो क्या.....?
तुम मुझमें रंग भरो तो 
कोई बात बने..........!
सपने नहीं देखती तो क्या..?
सुन्दर सलोने सपने जगाओ तो 
कोई बात बने ..........!
घुट घुट कर जी रही तो क्या..?
जीने का सबब बनो तो 
कोई बात बने...........!
रुक गई तो क्या..?
कदम से कदम मिला कर चलो तो..
कोई बात बने........!
✍️सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर

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