बलिहारी जाऊँ - स्वाति शर्मा

 
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मै बलिहारी जाऊँ रे,
मै बलिहारी जाऊँ रे !

पल पल अद्भुत भावों से,
यायावर हिय राहों से। 
अनुपम पिय के नयनो को,
कश्चित् पिय रिझाऊं रे ।

मै बलिहारी जाऊँ रे,
मै बलिहारी जाऊँ रे!

कजरारे मृगनयनों से,
अंगारें मद प्राणों से। 
चितवन हर्षित आनंदो से,
प्रेम सुधा  बरसाऊँ रे ।

मै बलिहारी जाऊँ रे,
मै बलिहारी जाऊँ रे !

चुन-चुन कर यौवन ढाला,
भर कर मन चंचल प्याला। 
रूठ-रूठ अग्रिम पल मे,
प्रिय सेवा करवाऊँ  रे।

मै बलिहारी जाऊँ रे,
मै बलिहारी जाऊँ रे !

रूप अनुपम अद्वित्य सा,
क्षणिक प्रिय आलिंगन सा। 
सत्य रूप अनुबन्धन सा,
चाहो रूप बिखराऊ रे।

मै बलिहारी जाऊँ रे,
मै बलिहारी जाऊँ रे !

औ पिया तेरे सिमरन भर्,
कश्चित् कोमल कवल पर। 
रूप रूप पग पग डग डग,
तुझमें विलय  हो जाऊँ रे ।

मै बलिहारी जाऊँ रे !
मै बलिहारी जाऊँ रे !
- स्वाति शर्मा, -504, KM -17, जे०पी० कॉसमॉस, 
सेक्टर-134,  नोएडा , उत्तर प्रदेश
 

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