लो प्रिये यह अश्रु मेरे और कर लो आचमन - अनुराधा पाण्डेय

 
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नैन का तटबंध टूटा
आज कवि मन बह रहा है.....।

एक युग से चिर विरह का
भार ढोते आ रही हूँ। 
प्रिय! पुहुप तरु को लगाकर 
खार ढोते आ रही हूँ।
क्या बताऊँ चित्त मेरा ,
दंश क्या-क्या सह रहा है।
आज कवि मन बह रहा है।

आर्त स्वर उर से निकल कर,
चाहते विश्राम पाना।
कंठ बरबस चाहता है ,
वेदना के गीत गाना ।
मौन का गुरु दुर्ग दुर्गम,
आज देखो! ढ़ह रहा है.....।
आज कवि मन बह रहा है
 - अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली   
 

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