शिक्षक - मधु शुक्ला 

 
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पुंज ज्ञान के शिक्षक होते, देवों सम होता है रूप,
विद्या का धन रहें लुटाते, कर्म सोच सब रहे अनूप।

सुत सम शिष्यों को ममता दे, चुनते जीवन पथ के खार,
गुरु वचनों के जो अनुगामी, उनको दहे न जीवन धूप।

श्रद्धा और समर्पण सच्चा, गुरु चरणों की पावन रेणु,
बना रही कितने शिष्यों को, सुयश कमाने वाला भूप।

मिल जायें चाणक्य अगर तो, बदले सारा जीवन चक्र,
चरणों में झुक जाती दुनिया, सहज पार होता भव कूप।

गुरु बिन सद् मति प्राप्त न होती, दूर नहीं होता अज्ञान,
दुर्गुण दूर भगाया  करते , गुरुवर  बन  जाते  हैं  सूप।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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