तीज - झरना माथुर 

 
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मेहंदी भी रचने वाली है,

कानों में झूमे बाली है,

अब तो आजा मेरे सजना,

सावन की मेहंदी  आयी है।

ऐसा सावन ये आया है,

मन को मेरे ये भाया है,

बूंदे गिरती कैसी छम छम,

काला बादल भी छाया है।

बागों में  झूला झूले हम,

गीतों में  मल्हार गाए हम,

फूलों पे भंवरो की गुंजन,

पावस दिन ये मनाये हम।

- झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

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