वो बचपन वो लड़कपन - राजेश कुमार झा

 
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वो बचपन वो लड़कपन लड़कपन आज फिर याद आता है।
न जाने क्यों वो गुजरा जमाना याद आता है।।
ना कोई चिंता ना कोई परवाह बस वो याराना याद आता है।
जहां कोई तेरा ना मेरा था वो अपनापन वो फसाना याद आता है।।
जहां न कल की सोच ना परसों की फिकर।
बस अपनी ही मस्ती में हो रही थी जिंदगी बसर।।
वो धूल मिट्टी में भिड़ना  वो हर छोटी-छोटी बातों पर दोस्तों से लड़ना झगड़ना।
 वो बीता हुआ जमाना याद आता है।।
वो  बचपन वो लड़कपन आज फिर याद आता है।
वो बचपन के खेल वो बचपन की यादें।।
 वो तीखी सी मीठी सी वो लुकाछुपी वो दौड़कर पकड़ना।

वो चोर सिपाही  राजा मंत्री की पर्ची से खेलना।।
बचपन का दौर जहां नहीं था हमें कुछ ठोर।
ना जात पात ना धर्म मजहब  का मोल।।
 हम थे उन सब बातों से अनजाने रहते थे मस्ती भाव भीभोर। 
बो नाना नानी का प्यार दादा दादी का दुलार।।
उन सब से हम होते थे गुलजार
वह गुजरा पल वो जमाना याद आता है।
वो बचपन वो लड़कपन  आज फिर याद आता है।।
- राजेश कुमार झा , बीना, मध्य प्रदेश  
 

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