जोशीमठ का मुकुट है औली का जादुई संसार - दीपक नौगाई

 
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utkarshexpress.com - चमोली जिले मे बदरीनाथ मार्ग पर जोशीमठ नगर आजकल चर्चा में है। कमजोर पहाड़ियां दरक रही है । घरों में दरारें आ गई है और लोग डर के साए मे जी रहे है । भविष्य में क्या होगा कोई नहीं जानता । जोशीमठ के ठीक ऊपर है औली, जिसे हम आज स्कीइंग के लिए जानते है । सुना है औली रोप वे का एक टावर भी खतरे में है । भविष्य में औली के ढलानों में भी दरारें पड़ सकती हैं,  इससे इंकार नहीं किया जा सकता । फिलहाल तो सरकार यहाँ विंटर गेम्स की तैयारी कर रही है ।
नब्बे के दशक में युवक मंगल दल की ओर से औली जाने का अवसर मिला था । यदि वाहन से जाए तो जोशीमठ से औली की दूरी 12 किलोमीटर है , पर हम ट्रेकिंग करते हुए 5 किलोमीटर  की सीधी चढाई चढ़ते हुए और बर्फ मे चलते हुए औली पहुँचे । यह दिसंबर माह की बात है । ट्रेकिंग हेतु कपड़े, जूते , छड़ी आदि आपको जोशीमठ में किराए पर मिल जाएंगे । औली मे अब बहुत कुछ बदल गया है । अब तो कई होटल बन गए है । एक कृत्रिम झील भी बनाई गई है । कुछ साल पहले एक चर्चित शादी समारोह से औली काफी चर्चा में आया था । मामला कोर्ट तक भी गया था । सारे नेता शादी मे मौजूद थे । इस चर्चित शादी समारोह से औली के प्राकृतिक स्वरुप से कितनी छेड़छाड़ हुई , इसकी चिंता किसी ने नहीं की ।
औली मूलतः निकट के गांवो का गोचर है । यह एक प्राकृतिक मैदान है, जिसे पहाड़ मे बुगयाल  कहा जाता है । बुगयाल यानी मखमली घास की लहलहाती धरती । छह महीने यह बुगयाल बर्फ से ढका रहता है । बुगयाल हिमालय में वृक्ष समाप्ति रेखा है और शाश्वत हिम रेखा के बीच का क्षेत्र है , जो गर्मियों में अतुलनीय हरियाली की ओढनी ओढ़ लेता है । अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ वृक्ष बहुत कम पाए जाते हैं । यहां की घास में  छोटे छोटे रोए पाए जाते हैं,  जो घास को अत्यधिक सर्दी से बचाते हैं । औली सालो से आसपास के गांवों के पशुओं का चरागाह था । 1962 मे भारत पर चीन के आक्रमण के बाद इसे सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र माना गया और इस हेतु जोशीमठ से औली तक हल्के वाहनों को पहुंचाने के लिए सड़क बनाई गई,  जो ' वनटन रोड ' के नाम से जानी जाती है ।
    में क्रिसमस के अवसर पर जो खेलकूद हुए, उसे ही देश की पहली स्कीइंग प्रतियोगिता माना जाता है । लेकिन सही मायने मे औली में स्कीइंग के खेल की शुरुआत करने का श्रेय भारत तिब्बत सीमा पुलिस को जाता है , जिसने सत्तर के दशक के शुरुआती सालों में अपने जवानों को स्कीइंग के खेल का  प्रशिक्षण देने हेतु विंटर क्राफ्ट सेंटर की स्थापना की । 1978 से यहाँ स्कीइंग का खेल बकायदा शुरु हुआ । तब से लेकर अब तक पुलिस खेलों के अलावा कई राष्ट्रीय शरदकालीन स्कीइंग प्रतियोगिताओ का आयोजन यहाँ हो चुका है  । औली के ढलानों को विश्व के कई प्रसिद्ध ढलानों के समान माना जाता है । ये ढलान समुद्र सतह से लगभग 2519 से 3049 मीटर ऊँचाई तक फैली हुई है । 

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1984 मे गढ़वाल मण्डल विकास निगम ने औली को पर्यटन विकास के मद्देनजर सेंटर के रुप मे विकसित करने की पहल की । आज यहाँ सैलानियों के ठहरने के पर्याप्त इंतजाम है । अब यहाँ जनवरी से मार्च तक प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता है । अनुभवी  प्रशिक्षक आन द स्पाट प्रशिक्षण देते हैं । तब यहाँ का नजारा देखने लायक होता है । अगर आप को ठंडी हवाओं और गुनगुनी धूप के बीच बर्फ में फिसलने का मजा लेना है , तो फरवरी में यहाँ  पधारे ।
औली की सैर का सबसे बड़ा आकर्षण है जोशीमठ- औली रोप वे । यह एशिया का दूसरा सबसे ऊँचा रज्जू मार्ग है । 1927 से 3027 मीटर की ऊंचाई तक यह रोप वे लगभग 4 किलोमीटर लंबा है । इसमें बैठ कर आप अत्यधिक ऊंचाई से पूरे  जोशीमठ व अलकनंदा नदी  का अदभुत सौन्दर्य देख सकते हैं । रोप वे का आकर्षण तब और बढ़ जाता है,  जब हिम आच्छादित उत्तराखण्ड की सबसे ऊंची पर्वत चोटी नंदा देवी सहित माणा पर्वत, द्रोणागिरी,  हाथी पर्वत,  गोरी पर्वत आदि चोटियां आंखो के सामने अपना संपूर्ण वैभव और सौंदर्य लिए खड़ी नजर आती हैं ।
औली पहुँचते ही चारों तरफ का सौंदर्य आपको मंत्रमुग्ध कर अपने मोहपाश में बांध लेता है । अरुणोदय की बेला में हिमानी ठंडक की मदमाती महक के बीच में स्वर्गीय सुषमा की रंगत देखते ही बनती है । पक्षियों के कलरव व चहचहाहट से तरुवर व आसमान गूंज उठता है । बादलों के पीछे आंख मिचौली खेलता रक्तिम रवि अपनी स्वर्णिम रश्मि से प्रकृति के कपोलो पर हल्की सी चपत मारता प्रतीत होता है । यही है औली का जादुई संसार जो प्रकृति प्रेमियों को यहाँ बार बार आने का मौन निमंत्रण देता है ।(विभूति फीचर्स)
 

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