प्यार की खुशबू - अनिरुद्ध कुमार
गजब माहौल कलका था, हवा में प्यार की खुशबू,
गरमजोशी मुहब्बत की, मिलन में यार की खुशबू।
लौट आये सभी अपने, बिताकर दुख भरी रातें,
भोर लगता सुहाना सा, खिले कचनार की खुशबू।
गुफ्तगू हर घड़ी होती, गुजारे जिंदगी का पल,
दौर अब तक नहीं भूले, दिले लाचार की खुशबू।
वक्त ने रंग दिखलाया, खुशी दिल को लुभाये रब,
धड़कने जोर बढ़ जाती, लिये दिलदार की खुशबू।
थिरकते पांव की सरगम, निगाहों को मजा देती,
बांवरा हो गया हर दिल, मधुर झंकार की खुशबू।
कदम अब बढ़ चले आगे, ठिकाना पास आने को,
नजर भी और क्या चाहे, फक़त दीदार की खुशबू।
रौशनी रंग दिखलाये, बहारों संग 'अनि' गाये,
हँसी बागे बहारो में, खिले गुलनार की खुशबू।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड