समझो परिवेश का बेड़ा ग़र्क है - हरी राम 

 
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धर्म जब लोगों का धंधा बन जाए,
आय का साधन चंदा बन जाए।
जब धर्म के नाम पर लोग सताएं,
लोगों को झूठी बातों से भरमाएं।
तब समझो परिवेश का बेड़ा ग़र्क है।

जब जाति धर्म की खड़ी हो दीवार,
अपराधियों के गले में हो फूलों का हार।
चोर उचक्के लेकर घूमें चौचक कार,
हत्यारों की हो सरेआम जय कार।
तब समझो परिवेश का बेड़ा ग़र्क है।

जब मिले न लोगों को भरपेट आहार,
लादा जाए सर पर टैक्स का भार।
बिन रिश्वत के हों जब काम उधार,
लगने लगे दलाली जब व्यापार।
तब समझो परिवेश का बेड़ा ग़र्क है।

शिक्षा और चिकित्सा जब हो मंहगी,
हो कंधे पर केवल विज्ञापन की बहंगी।
जब सिर पर कौआ ले घूमे कलंगी,
जेब का भार जब बन जाये सरंगी।
तब समझो परिवेश का बेड़ा ग़र्क है।

जब झूठी बातें सच सी बोली जाएं,
दूसरे के काम अपने गिनाए जाएं।
हवा में जब झूठी बातें फैलाई जाएं,
जब लोग अपने गुण के ही गीत गाएं।
तब समझो परिवेश का बेड़ा ग़र्क है।।
- हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश 
फोन नंबर - 7087815074
 

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