उपासना राम की, पूर्ण फल काम की - सौर चिंतक  विद्या ब.ना. कौशिक

 
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utkarshexpress.com - उपासना से मेरा अभिप्राय है- 'उपास्य से साक्षात्’ और यह उस समय तक संभव नहीं है, जब तक कि चित्त की वृत्तियां शुद्ध नहीं हैं, मन निष्ठा से एकाग्र नहीं है। उपासना सेवा के निकट है। अभ्यास की दृष्टि से उपासक को उपास्य से तादात्म्य स्थापित करने के लिए उपासना आवश्यक है। सात्विक आहार, विहार एवं दिनचर्या से उपासना पूर्णत: फलित होती है।
उपासना में- ज्ञान, भावना और कर्म की सात्विकता का विशेष महत्व है। ज्ञान ही मन का मनपन नष्टï करता है। उपासक और उपास्य का द्वैत भाव समाप्त करता है।
राम की उपासना में जप का सर्वाधिक महत्व है। जप का अर्थ है- मन से उच्चारण और स्पष्टï (सत्य) उच्चारण की आवृत्ति जप है। कामना प्राप्ति हेतु जप करते समय ऊन का लाल आसन हो।
भगवान राम की उपासना- (प्रमुखत:) संकीर्तन में है।
सीता राम के रूप में माता सीता प्रकृति और राम पुरुष का पुण्य स्मरण है। भारत में सगुण उपासना और निर्गुण उपासना प्रचलित है। सगुणोपासना में माधुर्य और ऐश्वर्य है। निर्गुण में अभेद भाव है। अगुनहि सगुनहि नहीं कछु भेदा। (बा.का.)।
राम शब्द में र+अ+म = राम र 'रकार’ अग्नि रूप (मनसा, वाचा कर्मणा), अशुभ कर्म भस्म होते हैं। अ 'अकार’ अज्ञान का नाश म 'मकार’ त्रय, ताप हरता शांति प्रदाता है। राम शब्द का जप ज्ञान को देने वाला, निर्लिप्त रखने वाला एवं भक्ति देने वाला है।
राम यशश्री को देने वाले हैं- यह 'र’ ही सगुण रूप है। 'म’ जीव और इन दोनों के मध्य 'अ’ माता सीता का आद्याशक्ति रूप है।
भगवान शंकर ने माता पार्वती से कहा- 'देवी, राम के अर्थ को राम ही जानते हैं।‘ जिस राम मंत्र की अखण्ड ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह त्रयोदश अक्षर मंत्र है :
श्रीराम जय राम जय जय राम।
राष्ट्र वीर शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास गोदावरी तट पर इसे सिद्ध कर त्रिकालज्ञ बने।
भगवान राम के षडाक्षर बीज मंत्र का जप मन ही मन में पुण्यफल प्रदाता है। राम मंत्र में आद्या शक्ति माता सीता स्थित रहती हैं।
'रां. रामाय नम:॥‘
बालकांड रामचरित मानस में महात्मा तुलसी कहते हैं-
अगुन अरूप अलख अज जोई।
भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥
राम अगोचर, अजन्मा और अरूप हैं परंतु भक्तों के लिए वे सगुणगोचर और रूपवान हैं। उन्होंने मर्यादित जीवन पद्धति प्रदान की। पूरे मानस में राम कहीं उपदेश नहीं देते हैं।
राम नाम जप : नाम और रूप एकाकार हों- गद्गद् स्थिति। भरत राम- वनवास को अपना कारण मानते हैं। वे सब कुछ त्याग कर राम नाम जप में लीन हैं।
गद्गद् गिरा नयन बह नीरू।
नाम जीह जप पुलक सरीरू॥
सिद्ध योगी कबीर तो अपने को 'मैं राम की बहुरिया रे’ माने बैठे हैं। नाम स्मरण में ज्ञानेन्द्रियां प्रमुख हैं। उनमें साम्यावस्था उत्पन्न होने से वैषयिक वृत्ति समाप्त हो जाती है। रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द कहीं कोई बाधा नहीं होती। राम कथा में शांतभाव मुख्य है। मर्यादा रामकथा का आधार है। महात्मा गांधी रामधुन अपनी शुक्रवारीय प्रार्थना में अवश्य रखते थे। औदार्य, कारूण्य, सौंदर्य और सेवा पूर्णफल काम हैं।
जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरति तिन देखी तैसी।
दुखी जन की सेवा, सत्संग, मानस का नित्य पाठ और सादा जीवन कल्याण को देने वाले हैं। भक्त प्रेम के वशीभूत राम हैं।
राम जप पूर्ण फल प्रदाता है। राम जप में किसी प्रकार की औपचारिकता की आवश्यकता नहीं है- श्रवण, स्मरण और कीर्तन तीनों ही पूर्ण काम हैं। भक्त रामोपासना से पूर्व राम भक्त हनुमान जी भी उपासना करते हैं।
राम दुवारे तुम रखवारे।
राम की उपासना सहज है, सरल है, प्रत्येक वर्ग, वर्ण, सम्प्रदाय का व्यक्ति रामोपासना कर सकता है। इससे मन और वातावरण का विचलन समाप्त हो जाता है। वस्तुत: राम की उपासना जीवन पद्धति है। अहंकार और दर्प का शमन है।
अगुन सगुन दुई ब्रह्म स्वरूपा अत: रामोपासना सर्व फलदायी है। (विभूति फीचर्स)

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