छंद दोहा - नीलू मेंहरा

 
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नारी ही नारी दिखे, सभी क्षेत्र में आज। 
अद्भुत शोभित हो रहा, उसके सिर पर ताज।।

नारी के उत्थान को, कभी न देना रोक। 
जिस पथ आगे बढ़ रही, मत देना तुम टोक।।

नारी को तुम मान दो, और करो सम्मान। 
नारी से ही बढ़ रही,भारत की नित शान।

घर जन्नत रहता सदा, नारी से कर प्यार। 
वरना यह जीवन रहे, दु:खों का भण्डार।

नारी चुप-चुप सी रहे, हरदम रहती मौन। 
मन में पलते क्लेश को, जान सके है कौन?

माॅं, बेटी, भगिनी सभी,सब नारी के रूप।
प्रिया बनी वो संगिनी, देवी रूप अनूप।।

सीता, राधा, द्रौपदी, सब भारत की नार।
नाम अमर इनका हुआ, माने यह संसार।।

दुर्गा, लक्ष्मी, कालिके, माता के हैं रूप। 
सदा पूज्य पीताम्बरी, देवी रूप अनूप।।

गीतों की महफ़िल सजी, लता नाम आधार।
आशा, ऊषा, शारदा, सब जाती हैं हार।।
- नीलू मेंहरा, कोलकता, पश्चिम बंगाल
 

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