विद्यासागर - सुनील गुप्ता

 
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(1) " वि ", विद्वान तत्त्वज्ञानी 
         प्रखर ओजस्वी वक्ता 
         दिखला गए हमें अलौकिक पथ  !
         करती रहेगी गुरुदेव की वाणी प्रकाशित.,
         थे प्रिय गुरुवर श्रीविद्यासागर महानसंत!!
(2) " द्या ", द्यावा पृथ्वी
         आद्यग्रन्थ ऋग्वेदऋचाएं बनी 
         गुरूजी की उपासना का मूल आधार  !
         रही आचार्यवर की ऐसी अमृतमयी वाणी,
         कि,जिसे सुन होए चले सभी का उद्धार !!
(3) " सा ", साधते चलें 
         सदैव जीवन साध्य
         कभी देहात्मभाव में ना उलझें  !
         चलें जीवन के लक्ष्यों को पहचानते..,
         और हरेक पल स्वयं को स्वयं से समझें !!
(4) " ग ", गए करते
         भू धरा पे विचरण
         बनाके संयमित जीवन करते तप साधना !
         सदैव बने रहे जीवों के प्रति बहुत दयालु.,
         करते रहे सभी के लिए मन से भावना !!
(5) " र ", रमें रहे
        करुणाधर श्री विद्यासागरजी 
        सदैव कठोर तपश्चर्या में जीवन भर  !
        पायी चरणरज श्रीगुरुवर की हमने यहाँ पे,
        हुआ कृतार्थ जीवन श्रीगुरु दर्शन पाकर !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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