विद्यासागर - सुनील गुप्ता
![pic](https://utkarshexpress.com/static/c1e/client/84522/uploaded/64bec0c7a80b0c61f776821f93168869.jpg)
(1) " वि ", विद्वान तत्त्वज्ञानी
प्रखर ओजस्वी वक्ता
दिखला गए हमें अलौकिक पथ !
करती रहेगी गुरुदेव की वाणी प्रकाशित.,
थे प्रिय गुरुवर श्रीविद्यासागर महानसंत!!
(2) " द्या ", द्यावा पृथ्वी
आद्यग्रन्थ ऋग्वेदऋचाएं बनी
गुरूजी की उपासना का मूल आधार !
रही आचार्यवर की ऐसी अमृतमयी वाणी,
कि,जिसे सुन होए चले सभी का उद्धार !!
(3) " सा ", साधते चलें
सदैव जीवन साध्य
कभी देहात्मभाव में ना उलझें !
चलें जीवन के लक्ष्यों को पहचानते..,
और हरेक पल स्वयं को स्वयं से समझें !!
(4) " ग ", गए करते
भू धरा पे विचरण
बनाके संयमित जीवन करते तप साधना !
सदैव बने रहे जीवों के प्रति बहुत दयालु.,
करते रहे सभी के लिए मन से भावना !!
(5) " र ", रमें रहे
करुणाधर श्री विद्यासागरजी
सदैव कठोर तपश्चर्या में जीवन भर !
पायी चरणरज श्रीगुरुवर की हमने यहाँ पे,
हुआ कृतार्थ जीवन श्रीगुरु दर्शन पाकर !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान