कुदरत के नज़ारे  (बाल कविता) - डॉ. सत्यवान सौरभ

 
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देखो लगते बड़े निराले,
बादल छाये काले-काले।

बादल घिरे, अँधेरी छाई,
चारों ओर रात घिर आई। 

निकले नील गगन के घर से, 
टप-टप करके बादल बरसे। 

रिमझिम-रिमझिम बरखा लाये,
गर्मी सारी दूर भगाये। 

हर्षित देखा जब नील गगन, 
बच्चे सारे तब हुए मगन। 

छू मंतर हुई गरमी सारी,  
मारें सब मिलकर किलकारी।

बनी सब गलियां ताल-तलैया, 
नाचे मिलकर ता-ता-थैया। 

पानी बरसा इतना खासा, 
लगता जैसे हो चौमासा।

देखा तब अजीब तमाशा,
इंद्र धनुष ने रूप तराशा।

कुदरत के ये अजब नजारे,
लगते सबको प्यारे- प्यारे।
- डॉ. सत्यवान सौरभ  333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, 
बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045,
 

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