पहलवानी से राजनीति की ओर विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया - राकेश अचल
Utkarshexpress.com - देश के शीर्ष पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पूनियां ने राजनीति में उतरने का फैसला शायद सही समय पर नहीं लिया है। ये दोनों राजनीति के दलदल में भावनात्मक रूप से उतर गए। अभी तक वे पूरे देश के खिलाड़ी थे, लेकिन अब वे एक दल के मोहरे बन गए हैं। इन दोनों की विचारधारा में कल तक खेल ही प्रमुख था। ये दोनों खेल के लिए बने थे ,राजनीति के लिए नहीं।विनेश और बजरंग पहलवान खिलाड़ी हैं और इनका खेल राजनीति के खिलाड़ियों से एकदम अलग है।
कहा जाता है कि राजनीति के खिलाड़ियों में खेल भावना नहीं होती जबकि असली खेलों के खिलाड़ी केवल खेल भावना से खेलते हैं। राजनीति के खेल में खेलना आसान नहीं होता ,हालांकि विनेश और बजरंग के राजनीति में आने से पहले भी उनके जैसे अनेक खिलाड़ी अपना खेल छोड़कर राजनीति के दलदल में उतर चुके है। आज भी कई खिलाड़ी संसद में हैं ,मंत्रिमंडल में हैं और राजनीति के खेल में शामिल हैं।खिलाड़ी किसी भी खेल में रहें लेकिन राजनीति में घुसते से ही वे खिलाड़ी नहीं रह जाते।अब वे अपने दल के प्रति निष्ठावान हो जाते हैं। उन्हें होना पड़ता है।विनेश और बजरंग को भी अब यही सब करना पडेगा।
यह तो तय है कि विनेश और बजरंग राजनीति में बदला लेने के लिए उतरे हैं। उन्होंने कांग्रेस को इसलिए चुना क्योंकि उनके ऊपर जो भी तथाकथित ज्यादतियां हुई हैं उनके लिए वे भाजपा और उसकी सरकार को जिम्मेदार मानते है।कांग्रेस ने उस बुरे समय में खिलाड़ियों का साथ दिया था। मुमकिन है कि वे सही हों। मुमकिन है कि वे सही न भी हों। लेकिन निजी तौर पर मै विनेश और बजरंग के इस फैसले कि साथ नहीं हूं। इन दोनों ने राजनीति में कूदकर वही गलती की है जो इस देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ,पूर्व सेनाध्यक्ष और अनेक पूर्व नौकरशाह कर चुके हैं। राजनीति में आने से पहले हर प्रोफेशनल को एक 'कूलिंग पीरियड 'से गुजरना चाहिए ,ताकि उनके योगदान की शुचिता बनी रहे। राजनीति वैसे भी अदावत का ही औजार मानी जाती है। अब यदि विनेश और बजरंग भी इसमें शामिल हो जायेंगे तो उनकी पहचान क्या रहेगी ? लोकतंत्र में राजनीति में आने का अधिकार अनपढ़ों से लेकर पढ़े-लिखों को भी है। संभ्रांत और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को भी है। खिलाडियों को भी इससे नहीं रोका जा सकता। लेकिन इतना तय है कि अब उन्हें भी आम राजनीतिज्ञों की तरह आरोपों -प्रत्यारोपों और गाली तथा गोली का सामना करना पडेगा। अब पूरा देश उनके साथ शायद ही खड़ा हो ,क्योंकि अब वे एक दल विशेष के कार्यकर्ता हैं। विनेश और बजरंग को राजनीति से लाभ होगा या नहीं यह तो नहीं मालूम लेकिन ये तय है कि कांग्रेस को इसका फायदा जरूर होगा। कांग्रेस यदि इन दोनों खिलाडियों का इस्तेमाल चुनाव बाद करती तो भी समझ आता ,लेकिन सबके अपने-अपने गणित हैं। महाबली खली से लेकर राज्यवर्द्धन सिंह तक राजनीति के दलदल में धंसे हुए हैं ,लेकिन कुछ ही लोगों को इसका लाभ मिला बाकी तो सिर्फ राजनीति के लिए इस्तेमाल किये गए हैं।
खेल में खिलाड़ी अपने सतत अभ्यास से निखरता है जबकि राजनीति में निखार दूसरे रास्तों से आता है। विनेश और बजरंग को राजनीति मेंआने से पहले थोड़ी रिसर्च करना था । राजनीति में उतरे कई खिलाडियों के नाम तो मुझे भी याद हैं। दीपा मलिक हों या कृष्णा पुनियां,विजेंद्र सिंह हों या परगट सिंह ,मोहम्मद कैफ हों या चेतन चौहान ,कीर्ति आजाद हों या नवजोत सिंह सिद्धू ,ज्योतिर्मय सिकदर हों या मोहम्मद अजहरुद्दीन ,गौतम गंभीर हों या असलम शेर खान ,सबके सब खेलों में जहां शीर्ष पर रहे वहीं राजनीति में इनका कोई विशेष स्थान नहीं बन पाया।इन खिलाड़ियों का जितना योगदान खेल के लिए था उतना राजनीति में इनका उपयोग नहीं हो पाया । खिलाडी का राजनीति में सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है या तो उनके ग्लैमर की वजह से या उनकी जातिगत प्रतिष्ठा की वजह से। राजनीति में उतरा एक भी खिलाड़ी नंबर एक या नंबर दो का राजनेता नहीं बन पाया।जबकि खेल में सारे नंबर खिलाड़ी खुद हासिल करता है।
विनेश को फ़िल्मी क्षेत्र से राजनीति में आयी कंगना रनौत के बारे में पढ़ना चाहिए था। अपने जमाने के पहलवान और अभिनेता दारा सिंह के बेटे विन्दु के बारे में पढ़ना चाहिए था लेकिन अब कुछ हो नहीं सकता। देर हो चुकी है। राजनीति किसी की सगी नहीं होती। न खिलाडियों की ,न संतों-महंतों की न आचार्यों की ,न शंकराचार्यों की। फिर भी राजनीति अस्पृश्य नहीं है। राजनीति में अच्छे और ईमानदार लोगों को आना चाहिए तभी देश सही मायने में प्रगति कर सकता है।कुल मिलाकर राजनीति के नए खिलाड़ियों को उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें। (विभूति फीचर्स)