मैंने जब उनके गीत सुने - यशोदा नैलवाल

 
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उर में उमड़े जब  विकलित स्वर  तो भावों  का संधान किया,
मैंने जब उनके  गीत  सुने  तब  पीड़ा  का अनुमान  किया।
तुमको ना अनुभव हो पाया,
तुम कल्पित कवि मन क्या जानो। 
जो मन  भीतर  उद्वेलित हैं,
तुम  अक्षर  अर्पण  क्या जानो।
बस ह्रदय वेदना पढ़कर के   उस   अंतर्मन   का मान   किया,
मैंने  जब  उनके  गीत  सुने   तब   पीड़ा  का अनुमान  किया।
जब मन उत्साह विभोर हुआ,
नदिया  सा   चंचल  लिख डाला।
जब  मायूसी  घिर  कर आई,
तब धीरज अविचल लिख डाला।
जब शब्द मन्त्र अनुभूत हुए  उन  गीतों   का  आह्वान  किया,
मैंने  जब  उनके  गीत  सुने   तब   पीड़ा  का अनुमान  किया।
ये भोग विलासित निर्मम मन, 
उस   कोमल  मन को क्या जाने।
बिन भाव आचमन के वह मन,
गीतों   का   जीवन   क्या  जाने।
हर वैभव और सुख पाकर भी जिसने न कभी अभिमान किया,
मैंने  जब  उनके  गीत  सुने   तब    पीड़ा  का अनुमान  किया।
- यशोदा नैलवाल, दिल्ली

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