जब प्यार हुआ उसे पिंजरे से - सविता सिंह 

 
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चाह है दबी हुई, 
और थाह तक नहीं।
लगन है मिलन की 
पर निर्वाह तक नहीं।
वाह भी कहते हैं 
मगर आह से सनी।
दर्द दफन सीने में 
और कराह भी नहीं.
राह भी वही है 
मगर हमराह वह नहीं।
अजब सी है अगन 
और धाह तक नहीं।
मझधार में है नाव 
और मल्लाह तक नहीं।
नदी सी कल-कल 
पर प्रवाह ही नहीं।
जाऊँ कहाँ बता ऐ दिल 
कहीं पनाह तक नहीं। 
- सविता सिंह मीरा , जमशेदपुर

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