आजमायें कब तलक - अनिरुद्ध कुमार 

 
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चोट खायें दर्द गायें कब तलक,
बैठ कें आँसू बहायें कब तलक। 

कौन अपना सोंचना मुश्किल लगे,
बेखुदी  में  गुनगुनायें कब तलक। 

जिंदगी  बर्बाद  लगती हो गयी,
बेसहारा दिल रुलायें कब तलक। 

हर तरफ काँटे चुभें अब राह में,
पाँव को जख्मी बनायें कब तलक। 

मायूसी वीरानियों के साथ में,
यूँ बता जीवन बितायें कब तलक। 

अब नहीं महफूज लगती जिंदगी,
बात लोगों से छिपायें कब तलक। 

हो गयी बदरंग 'अनि' की जिंदगी,
ये नशीबा आजमायें कब तलक। 
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड
 

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