मैं कहीं भी रहूँ - सुनील गुप्ता
( 1 ) रहूँ
कहीं भी मैं चाहे,
पर, रहूँगा सदैव तुम्हारे दिल में !
भले ही दूर चला जाऊँ कहीं पे....,
फिर भी, हमेशा याद करता रहूँगा मैं !!
( 2 ) चाहूँ
तुम्हें सदैव दिल से,
है ये रिश्ता प्रेम प्यार मोहब्बत का !
जुड़े हैं इस मन के तार तुमसे सतत.....,
और बनी रहती हैं मधुर स्मृतियाँ सदा !!
( 3 ) कहूँ
तुमसे बात दिल की,
सुनों मन की अतल गहराईयों से !
समझा है तुम्हें हमेशा से ही हमने......,
और बसती हो प्रिय तुम मेरे हृदय में !!
( 4 ) है
तुमसे मेरी पहचान वज़ूद,
वरना, कौन है मुझे जो जानें-समझे !
हूँ हालात का मारा, फिरता यहाँ-वहाँ कहीं...,
और मजबूरी में हुआ हूँ मैं दूर तुमसे !!
( 5 ) सहूँ
दुनिया के उलहाने ताने,
पर, कोई न कर सकता है तुमको जुदा !
रहेगा जबतक ये दिल धड़कता यहाँ पे...,
मैं कहीं भी रहूँ, रहूँगा प्रेम करता सदा !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान