असली राजा कौन? (बाल जगत) - अल्ताफ हुसैन जौहरी

 
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utkarshexpress.com - राजा अजीत सिंह बहुत ही दयालु, दानवीर एवं रहमदिल इंसान था। उसके पास जो भी कोई मांग लेकर आता, वह यथासंभव मुक्त हस्त से उसकी मदद करता। यही वजह थी कि उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। कभी-कभी राजा की भलमनसाहत एवं उदार मन प्रवृत्ति का कुछ चालबाज लोग गलत फायदा उठाते, परंतु राजा था कि इस सबकी परवाह किए बगैर अपने कर्म के प्रति निष्ठावान था।
कल्लू नाई जो नित्य राजा की हजामत बनाने आता था, वह राजा की सहज प्रवृति से वाकिफ था तथा आये दिन कोई नया दुखड़ा रोकर राजा का विश्वास एवं सहानुभूति प्राप्त कर सोने चांदी का उपहार ऐंठकर ले जाता। ऐसा हाल कल्लू नाई का ही नही वरन् मंत्री-संतरी सहित आने वाले उन याचकों का भी होता था जो राजा के पास याचना लेकर आते और राजा नि:स्वार्थ भावना से उनकी मांगें पूर्ण करते चला जाता था। लोग-बाग राजा द्वारा दिये गए धन सोने-चांदी की चमक देखते ही फूले नहीं समाते थे। राजा द्वारा दिये गये धन से संपन्न होने के बाद भी कल्लू नाई के लालच में कमी नही आई थी। अब तो उसके मन में राजा के प्रति कुछ और ही कुचक्र पनपने लगा था।
उसने सर्वप्रथम राजा का विश्वास अर्जित करने के लिये राजभवन में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों जैसे भ्रष्टाचार, अन्याय एवं राजद्रोह जैसे मामलों से राजा को अवगत कराना शुरू किया। प्रत्येक मामले में वास्तविकता होने पर धीरे-धीरे वह राजा का अति विश्वासी व्यक्ति होता चला गया। विश्वसनीयता का आलम यह हो गया था कि राजा अपनी व्यक्तिगत एवं निजी मामलों से कल्लू नाई को अवगत कराता एवं उससे सलाह लेने लगा। एक प्रकार से अब कल्लू नाई राजा की आंख का तारा हो गया था। वहीं कुछ लोगों की नजरों में वह उनकी आंख की किरकिरी भी हो गया, परंतु उसे उन सबकी कोई परवाह नही थी, बस उसे तो एक उचित अवसर की तलाश थी जो शीघ्र मिल गया।
एक दिन राजा एकांत में बैठा था कि कल्लू नाई ने कक्ष में प्रवेश किया। राजा को चिंतामग्न देख कल्लू नाई ने कहा- राजन आप किस चिंता में डूबे हैं। राजा ने कहा कल्लू, रोज-रोज की राजनीति, प्रपंच एवं बखेड़ों से मुझे अब ऊब सी होने लगी है, सोचता हूं कुछ महीनों के लिये मैं रानी के साथ अज्ञातवास चला जाऊं, परंतु मेरे जाने से राज-काज पर इसका बुरा असर पड़ेगा। राजा के विचार सुन कल्लू नाई ने फौरन गरम लोहे पर चोट मारते हुए कहा- राजन तो इसमें चिंतित होने की क्या आवश्यकता है? आप राजदरबार में घोषणा करा दें कि मेरी अनुपस्थिति में संपूर्ण राजकाज का कार्य कल्लू यानि कि मैं देखूगां। बस, आपके आने तक मैं सब सम्हाल लूंगा। राजा को भी कल्लू नाई की बात उचित लगी, क्योंकि कल्लू नाई मंत्रियों के विरूद्घ पहले ही राजा के कान भर चुका था अतएव उन पर विश्वास करने का प्रश्न ही नही उठता था। एक दिन राजा ने राजदरबार में कल्लू नाई को कार्यवाहक राजा बनाने की घोषणा की एवं कुछ माह के लिए रानी के साथ अज्ञातवास को निकल पड़ा। लगभग छ: साल का लंबा समय व्यतीत होने के पश्चात राजा अपनी रानी के साथ राज्य में वापिस पहुंचा, लेकिन इन छ: साल के अंतराल में राज्य में परिवर्तन हो चुका था। कल्लू नाई ने राज्य का कार्य सम्हालने के पश्चात सर्वप्रथम मंत्रियों और अधिकारियों को भ्रष्टाचार की खुली छूट दे दी, जिससे वे असंतुष्ट जो कल्लू नाई से मन में मैल रखते थे, खुश हो गए एवं कल्लू को अपना वास्तविक राजा मानने लगे। स्वभाविक था ऐसी स्थिति में राजा को महल में प्रवेश ही नहीं दिया गया। राजा के लाख जतन के बावजूद उसे प्रवेश न मिलने पर वह भी अपना सा मुंह लिए चला गया एवं राज्य के अंतिम छोर पर एक कुटिया बनाकर रानी सहित जिंदगी गुजारने लगा।
धीरे-धीरे समय गुजरता  गया। गरीबी और चिंता में राजा अजीत सिंह दुबला होता चला गया और इधर कल्लू नाई, जो अब राजा कमलसिंह के नाम से जाना जा रहा था, रात-दिन शराब एवं अय्याशी में डूबा रहता। राज्य के कर्मचारी भी भ्रष्टाचार में लिप्त थे एवं प्रजाजन में एक प्रकार से अंसतोष व्याप्त था।
इधर केंद्र सरकार को भी कर के रूप में मिलने वाला धन प्राप्त नही हो रहा था, सो एक दिन महाराज इंद्रजीत सिंह अपने लाव-लश्कर के साथ रवाना हुए। इसकी खबर जब वर्तमान राजा कमलसिंह उर्फ कल्लू नाई को लगी तो उसने भी महाराज की अगवानी हेतु संपूर्ण राज्य को रंग-बिरंगी पताकाओं एवं तोरण द्वारों से सजा दिया। महाराज इंद्रजीत के आगमन की सूचना जब राजा अजीत सिंह को लगी तो उन्होनें भी सीमांत के पूर्व एक स्थान पहुंचकर महाराजा से मिलने का निश्चय किया। निश्चित तिथि पर महाराज इंद्रजीतसिंह की सवारी पहुंची। राजधानी में प्रवेश के पूर्व ही राजा अजीत सिंह ने किसी तरह महाराज से भेंट की तथा वस्तुस्थिति से उन्हें अवगत कराया। राजा अजीत सिंह की बात सुनकर पहले महाराज इंद्रजीतसिंह चौंके फिर उन्हें राजा अजीतसिंह की सहजता पर बड़ा ही तरस आया। उन्होनें उनसे दूसरे दिन दरबार में उपस्थित होने का वादा लेकर राजधानी में प्रवेश किया। दूसरे दिन राजा अजीत सिंह ने खचाखच भरे राजदरबार में प्रवेश किया। राजा की कृशकाया एवं साधारण वेशभूषा देखकर किसी को उसके राजा होने की शंका भी नहीं हुई। इधर कल्लू नाई महाराज की जी-हुजूरी करते नही थक रहा था। संपूर्ण कर्म निपटाने के बाद महाराज ने प्रजा को संबोधित किया तथा प्रजा से उसके दुखों के निवारण हेतु खुला आमंत्रण दिया, परंतु वर्तमान राजा के भय से किसी ने साहस नही दिखाया, लेकिन राजा अजीत सिंह ने आगे बढ़कर कहा- महाराज मुझे आपसे कुछ कहना है। इतना सुनना था कि वर्तमान राजा के रूप में बैठा कल्लू नाई उर्फ राजा कमल सिंह चौंक पड़ा। उसने गौर से महाराज अजीत सिंह को देखा तो उसके तेवर फौरन बदल गए। उसने तुरंत लाल-पीली आंखें करते हुए सिपाहियों को आदेश दिया, ये कौन गुस्ताख है, इसे फौरन यहां से ले जाओ। इसके पूर्व सिपाही कोई हरकत में आते महाराज इंद्रजीत सिंह ने हस्तक्षेप किया। ठहरो, इसे अपनी बात कहने दो। तब अजीत सिंह ने कहा-महाराज मुझे इंसाफ चाहिए मैं यहां का असली राजा हूं, परंतु इस धूर्त नाई ने बड़ी चालाकी के साथ मेरे संपूर्ण राज्य में अपना आधिपत्य जमा रखा है। कहते हुए राजा ने एक बार पुन: संपूर्ण वृतांत उपस्थित जन समूह के समक्ष महाराज इंद्रजीत सिंह को सुना दिया। इस पर कल्लू नाई ने भी मनगढ़ंत कहानी गढ़कर महाराज को सुनायी तथा असली राजा होने की प्रबल दावेदारी पेश की। महाराज ने दोनों की बात सुनकर अगले दिन फैसला देने का निर्णय कर राजसभा को बर्खास्त किया।
आज महाराज इंद्रजीत सिंह  सुबह काफी देर से सोकर उठे, वजह थी रात भर वह सोचते रहे कि राजा अजीत सिंह की वास्तविकता जनता के समक्ष कैसे लाएं। स्नान आदि से निवृत्त होकर  वस्त्र धारण किये तथा सर में मुकुट धारण कर उन्होनें जूता पहनने के लिये सेवक को देखा, जो नदारद था। उन्होनें क्रोध भरे लहजे में सेवक को आवाज दी पर वह उपस्थित नहीं हुआ। इस पर वे खीझकर आसन पर बैठ गए। कुछ क्षण पश्चात सेवक ने घबराकर भागते हुए कक्ष में प्रवेश किया तथा अपनी विवशता बताकर क्षमा मांगने लगा। महाराज ने भी उसे कुछ नही कहा। जब सेवक उन्हें जूता पहना रहा था, सहसा उन्हें एक युक्ति सूझी- वे तत्काल अधिकारियों को राजदरबार में दो सिंहासनों सहित राजसी वेशभूषा, मुकुट तथा दो जोड़ी जूता रखने का आदेश देकर राजसभा की ओर चल पड़े।
असली राजा कौन है इस उत्सुकता को लेकर भी राजसभा में खचाखच भीड़ उपस्थित थी। उन्होनें जनता एवं उपस्थित विशिष्टजनों से रूबरू होते हुए कहा- यह हमारे जीवन का बड़ा ही पेचीदा प्रकरण है कि एक पद के लिये दो दावेदार है। इसलिये हमने यह युक्ति निकाली है कि यहां रखे गये राजसी वेशभूषा को ग्रहण कर जो जल्दी आसन पर विराजमान होगा वही असली राजा माना जाएगा। इसके पश्चात उन्होने दोनों को राजसी वेशभूषा धारण करने की आज्ञा दी। कल्लू नाई झटपट वेशभूषा धारण कर आसन पर बैठकर मुस्कुराने लगा, परंतु राजा अजीत सिंह ने वस्त्र, मुकुट आदि तो धारण कर लिया, लेकिन जूता पहनने के वक्त वह इधर-उधर देखने लगे। तब कल्लू नाई बोला- देख लिया महाराज, असली राजा मैं ही हूं, मैं सर्वप्रथम राजसी वस्त्रादि धारण कर आसन में बैठा हूं, और इस धूर्त को जूता पहनने का सलीका भी नहीं है तो ऐसा व्यक्ति कैसे राजा हो सकता है? तब महाराजा इंद्रजीत सिंह ने कहा- धूर्त!
धूर्त ये नही बल्कि तुम हो, क्योंकि खानदानी राजा का गुण यह होता है, वह कभी झुककर जूता नही पहनता, उसे पहनाने के लिए एक सेवक होता है और तुम लोभी कहीं के, राजा की सहजता का अनुचित लाभ उठाकर राजाओं की बराबरी करने लगे। उन्होने कहा यदि अब भी तुमने झूठ का सहारा लेकर अपनी वास्तविकता छुपाने की चेष्टा की तो तुम्हे कठोर दंड भोगना पड़ेगा।
महाराज की गुर्राहट का प्रभाव फौरन पड़ा। कल्लू नाई ने मिमियाते हुए वास्तविकता उगल दी तथा भविष्य में ऐसा न करने की कसम खाकर राज्य से दूर चला गया। इस प्रकार जनता को उनका असली राजा मिल गया एवं राजा ने इस घटना के पश्चात किसी पर भी सहजतापूर्वक विश्वास न करने का व्रत लिया। (विभूति फीचर्स)

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