क्यों और कैसे होता है कैंसर ? - कृष्ण कुमार मिश्र

 
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utkarshexpress.com - कैंसर एक भयानक जानलेवा रोग है। हर वर्ष लाखों व्यक्ति इस रोग से काल के गाल में समा जाते हैं। कैंसर के विषय में डॉक्टरों द्वारा निरंतर अन्वेषण किये जा रहे हैं तथा कैंसर चिकित्सालय एवं कैंसर प्रयोगशालायें खुल रही हैं। संसार की कुल जनसंख्या  में से  लाखों व्यक्ति प्रति वर्ष इसी रोग से मरते हैं। इससे यह अनिवार्य हो गया है कि इस रोग के बारे में हर व्यक्ति को पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। कैंसर शब्द का अर्थ केकड़ा से है। अभी तक ठीक पता नहीं लग पाया है कि यह रोग क्यों और कैसे होता है, परन्तु जैसा कि इसका अर्थ है उसी प्रकार यह जिस अंग में हो जाता है उसके आसपास चारों ओर बढ़कर अपना विकराल रूप धारण कर लेता है और आसपास के अंगों को अपनी गिरफ्त में लेकर खराब कर देता है। यह रोग संसार के प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक जानवर के शरीर में हो सकता है। किसी विशेष व्यक्ति अथवा जानवर ही इसके शिकार नहीं होते।
प्राचीन इतिहास देखने से पता चलता है कि कैंसर पर काफी विचार  हुआ था। ईसा के चार सौ वर्ष पूर्व हिपोक्रेटस नामक वैज्ञानिक ने इसे पहचाना जिसे उसने कारकीनोना कहकर पुकारा। चार सौ वर्ष के उपरान्त इस बीमारी की प्रकृति और जानकारी इस हद तक हुई कि सेल्सस नामक रोमन सर्जन ने स्तन के कैंसर का पता लगाया और उसकी चीर फाड़ की राय दी। उसने इसी उपाय को एकमात्र इलाज बताया। उसने आपरेशन का भी एक तरीका निकाला। कैंसर अधिकांश बीच की आयु या फिर अधिक आयु वाले को होता है। पुरुषों में पेशाब की थैली के पास एक ग्रन्थि होती है जिसको प्रोस्टेट ग्लेण्ड कहते हैं। उसी में अधिकतर कैंसर होता है और औरतों में स्तनों, बड़ी आंत अथवा  बच्चेदानी और उसके संबंधित अंग में कैंसर होता है। अभी तक इससे संबंधित सही जानकारी नहीं हो सकी है कि इस रोग को पैदा करने में कौन सा कारण, कौन सी जलवायु सहायक है। वैसे आजकल बीड़ी, सिगरेट, पुडिय़ा, गुटखा का प्रचुर मात्रा में चलन हो गया है जो इस रोग को उपजाने में अग्नि में घी जैसा कार्य करते हैं। परन्तु हम इसको दृढ़ता पूर्वक नहीं कह सकते क्योंकि बहुधा देखने में आया है कि जो लोग जीवन में कभी भूल से इन दुर्व्यसनों को नहीं अपनाते हैं वह भी कैंसर जैसे भयानक रोग से ग्रसित होकर काल के गाल में समा जाते हैं। शहरों में कैंसर से गांवों के अनुपात से अधिक मृत्यु होती है। संसार के उन देशों में कैंसर अधिक होता है जो आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से गिरे हुए हैं। दक्षिणी पूर्वी एशिया और भारत में पान खाने से मुंह का कैंसर एवं सिगरेट पीने वालों को फेफड़ों में कैंसर होने की अधिक संभावना बनी रहती है। कश्मीर में अधिक ठंड पडऩे के कारण मनुष्य गले में अंगीठी लटका लेते हैं जिसे कांगड़ी कहते हैं। इससे उनको पेट की खाल का कैंसर बन जाता है जिसको कांगड़ी कैंसर कहते हैं। जो कश्मीर के लोगों में अधिक पाया जाता है।
कैंसर तपेदिक (टी.बी.) की भांति नहीं है। यह उससे बिल्कुल भिन्न है। इसके हो जाने के कई कारण है। तपेदिक की भांति एक ही कारण नहीं। उदाहरण के तौर पर बुखार होने के भिन्न-भिन्न कारण होते हैं जैसे मियादी बुखार, मलेरिया बुखार, इन्फ्लुएंजा इत्यादि। वैसे कैंसर की एक वजह कारसीनोजन मानी जाती है।
कारसीनोजन दो प्रकार के होते हैं।
1. एक्सोजोनस जो बदन के बाहर पैदा होते हैं। 2. इन्डोजोनस जो बदन के अन्दर पैदा होते हैं।
कारसीनोजन को चार भागों में बांटा जा सकता है-
1. रासायनिक यौैगिक, 2.  सेक्स हार्मोन्स, 3. रेडियेशन, 4. फिल्टेरेबुल वायरस।
सन् 1775 ई. में परसीवल पाट नामक वैज्ञानिक ने बताया था कि खाल का कैंसर उन मजदूरों में पाया जाता है जो तारकोल का काम करते हैं। सन् 1915 ई. में अर्थात् 140 वर्ष बाद यामागेबा और इसीकावा नामक जापानी वैज्ञानिक परीक्षण के लिये खरगोश के कान पर रोज तारकोल का लेप करते रहे। छह महीने तक लगातार लेप करने के बाद उसके उसी स्थान पर कैंसर हो गया।
दूसरा उदाहरण एनोलीनडाई का है। जिससे पेशाब की थैली में कैंसर हो जाता है। यह ट्यूमर न केवल एनोलीन डाई के काम करने वालों में पाया जाता है बल्कि कुत्तों में भी हो जाता है। सत्य तो यह है कि हम लोग जीवन भर एक कारसीनोजन के समुद्र में तैरते रहते हैं और कुछ अपने अच्छे भाग्य के कारण मृत्यु के चंगुल से बच जाते हैं। अधिकतर कैंसर 35 वर्ष की आयु से 65 वर्ष की अवस्था तक होता है। इसमें भी पुरुषों में 55 वर्ष एवं स्त्रियों में 50 वर्ष तक का समय कैंसर का प्रभावी समय रहता है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में 3.2 अनुपात में कैंसर की  संभावना अधिक पाई जाती है। स्त्रियों में स्तनों  एवं उत्पादक अंगों में अधिक कैंसर होता हैं। मनुष्यों में कुछ ट्यूमर ऐसे हैं जो कई पीढिय़ों तक चलते पाये जाते हैं।
इसका एक ऐतिहासिक उदाहरण नेपोलियन का है। उसके बाबा जोसेफ बोनापार्ट एवं पिता चाल्र्स वोनापार्ट भाई ल्युसिन तथा तीन बहनें पेंट के कैंसर के कारण मृत्यु के ग्रास बने एवं वह स्वयं भी पेट के कैंसर के कारण ही मौत का शिकार हुआ।
कैंसर का इलाज- 1. शल्य चिकित्सा, 2. रेडियोथैरेपी, 3. आइसोटोप्स द्वारा रेडियेशन, 4. हार्मोनल, 5. कीमोथैरेपी।
कभी कभी इनमें से दो से अधिक तरीकों से इलाज करने से अधिक लाभ होता है। जैसे आप्रेशन के पश्चात डीप एक्सरे का लगाना। वैसे कैंसर का शीघ्र आपरेशन करके निकाल देना ही श्रेष्ठ इलाज है।
 शरीर के भीतर अंगों में यदि काफी एक्सरे और रेडियम का प्रयोग आरम्भ से ही किया जाय तो गहरे से गहरा ट्यूमर भी ठीक हो सकता है। रेडियम और डीप एक्सरे का इस्तेमाल उस हालत में अधिक किया जाता है जब आपरेशन के लिये रोगी तैयार न हो या रोगी की सामान्य हालत इस काबिल न हो कि आपरेशन हो सके। अथवा ट्यूमर इतनी खतरनाक हालत में हो जिसका आपरेशन करना सम्भव न हो।
आधुनिक काल में रेडियम की सुइयां जीभ के कैंसर में और रेडियम वाल्ब गले की गांठों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
हार्मोनल थैरेपी का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है पुरुषों के कैंसर में नारियों का हारमोन देने से अपेक्षा से अधिक लाभ होता है।
लोगों को कैंसर के विषय में शिक्षित होना आवश्यक है। यदि रोगी को इस रोग के विषय में कुछ जानकारी हो तो समय रहते इलाज भी हो सकता है और उसमें सफलता भी मिल सकती है। बहुत लोगों में ऐसी गलत धारणा है कि कैंसर में शुरू से ही दर्द होने लगता है और रक्त आने में दर्द का न होना रोगी की समझ में कोई विशेष डर की बात नहीं होती। हर चिकित्सक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह लोगों के दिल में भरे इस गलत विश्वास को निकाल दे। यदि जनता को इस बात को विज्ञापन द्वारा अथवा रेडियो-दूरदर्शन के माध्यम से बताया जा सके कि  बिना दर्द की गांठ से असाधारण रूप से रक्त बहने से कैंसर जैसा भयंकर रोग हो सकता है तो इस रोग की चिकित्सा में काफी हद तक सफलता प्राप्त हो सकती है।
खांसी ठीक हो जाने पर भी कफ का बराबर आना, गला बैठ जाना तथा आवाज का भारी बना रहना, सिगरेट पीने वालों के पुराने कफ में कुछ तब्दीली होना, भूख न लगना और बदहजमी के कुछ दूसरे चिन्ह होना, लाल रक्त गिरना तथा काला पाखाना आना यह सब कैंसर होने के लक्षण हैं। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोगी की भली प्रकार जांच की जानी चाहिए। ऐसे नये नये तरीके निकाले जायें जिनके द्वारा रोग आसानी से पकड़ में आ जाये। यदि जांच में ही सही इलाज हो जाय तो कैंसर जैसे भयंकर रोग पर विजय प्राप्त की जा सकती है। (विनायक फीचर्स)

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