पत्नी एक, नाम अनेक - सुनील गुप्ता 

 
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प्रिय पत्नी एक, नाम अनेक
हर एक भाव, दिव्य अप्रतिम  !
जिसने जैसा है रुप देखा......,
रख दिया नाम, श्रेष्ठ अनुपम !!1!!

हे प्रिय स्त्री प्राणेश्वरी
बनी हो मेरी अर्धांगिनी  !
तुम ही हो प्राणवल्लभा हृदयेश्वरी......,
जीवन की सच्ची वामांगिनी  !!2!!

करके तुमसे पाणिग्रहण
बनी तुम मेरी दुलहन परिणीता  !
हे सहगामिनी दयिरा सजनी....,
तुम ही प्राणप्रिया दुलहिन कांता !!3!!

धन्य संगिनी तुमने स्वीकारा
बनना जोरू, बीवी धर्मपत्नी   !
हो तुम वल्लभा जाया दारा.....,
और तुम ही तिय गृहस्वामिनी !!4!!

कृपा हुयी प्रभु की हे प्रिया
कि, तुम चली आयी बन श्रीमती  !
हो तुम बन्नी वनिता तिरिया.....,
तुम ही सहधर्मिणी वधू प्रिय अति !!5!!

हैं रुप तुम्हारे अनगिनत कितने
हो भार्या औरत कलत्र गृहिणी  !
तुम ही मेरी वामा अंकशायिनी.......,
हो तुम बेगम लुगाई और पत्नी !!6!!

तुम जैसी पाकर सुंदर घरवाली 
सब कुछ पाया है जनाना  !
ओ गेहिनी सहचरी गृहलक्ष्मी......,
तुमसे ही ये घर परिवार बना !!7!!

हे नारी देवी लक्ष्मी स्वरूपा
करता हूं तेरी स्तुति वंदना  !
तू ही माँ अन्नपूर्णा सरस्वती.....,
मेरी गीत काव्य की प्रतिभा!!8!!
 ('पत्नी', शब्द के कुल पैंतालीस पर्यायवाची शब्दों को शामिल किया गया है)
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान
 

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