विश्व हिन्दी दिवस - हरी राम यादव

 
pic

utkarshexpress.com - भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने विचारों और मनोभावों को दूसरों के सामने व्यक्त करते हैं और लोग जिससे  द्वारा एक दूसरे के विचारों या मनोभावों को जान और समझ पाते हैं। पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव - जंतु, पशु - पक्षी सब की अपनी एक भाषा होती है और सभी अपने समाज की उस भाषा को बहुत अच्छी तरह से समझते हैं और अपने समाज की भाषा को सुनकर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते हैं। इसी तरह प्रकृति में जीवों में सबसे श्रेष्ठ कहीं जाने वाली मानव जाति की भी विभिन्न भाषाएं हैं जो कि अलग अलग देशों में बोली जाती हैं। उनमें से एक प्रमुख भाषा है हिन्दी। 
हिन्दी भाषा, अंग्रेज़ी, मंदारिन और स्पेनिश के बाद दुनिया में व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषाओं में से एक प्रमुख भाषा है। बोलने वालों की संख्या के हिसाब से दुनिया की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हमारे देश में करीब 77 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते, लिखते, समझते और पढ़ते हैं।
वर्तमान समय में हिन्दी  केवल हिन्दुस्तान में ही  नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में बोली जाने लगी है। आज जहां भी भारतीय लोग रह रहे हैं उन जगहों पर वह अपनी हिंदी भाषा को अपनाए हुए हैं। हिन्दी भाषियों के अलावा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस, कनाडा, इंग्लैंड, इटली, बेल्जियम, फ्रांस,जापान, नार्वे, स्वीडन, चैकोस्लोवाकिया, रूमानिया, चीन, पोलैण्ड, मैक्सिको, मॉरीशस, फिजी, गुयाना, दक्षिणी  अफ्रीका सूरीनाम, कीनिया, ट्रिनीटाड - टुबैगो, बर्मा, थाईलैण्ड, नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया आदि देशों में लोगों द्वारा पढ़ी, लिखी और बोली जा रही है।
विश्व में हिन्दी भाषा का विकास करने और इस का प्रसार  करने के उद्देश्य से विश्व हिन्दी सम्मेलन की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया था तब से इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। 10 जनवरी 2006 को पहली बार पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह द्वारा विश्व हिंदी दिवस मनाने की घोषणा की गयी और तब से इसे वैश्विक भाषा के रूप में प्रचारित करने के लिए 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
हमारी हिन्दी भाषा इतनी सरल, समृद्ध और सक्षम है कि हमारा सारा कामकाज सुचारू रूप से हिन्दी में किया जा सकता है। इसके शब्द भंडार विस्तृत और अथाह हैं। इसमें इतनी मिठास भरी है कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इसमें हर संबोधन के लिए अलग अलग-अलग शब्द हैं,और एक शब्द ही नहीं अनेकों शब्द हैं। हम अपनी इच्छा के अनुसार चुन और बोल सकते हैं, जबकि विश्व की अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं है। उदाहरण स्वरुप यदि हम अंग्रेजी की बात करें तो, अंग्रेजी भाषा में सम्बोधन के साथ आदर सूचक शब्द के लिए केवल माई डियर शब्द ही है चाहे वह आपके माता-पिता, चाचा -चाची हों या बेटा - बेटी, पत्नी हों, लेकिन हिन्दी में, आदरणीय , पूज्यनीय, श्रद्धेय, प्रिय , हृदयांश, हृदयकणिका जैसे तमाम शब्द, पद की गरिमा के अनुसार प्रयोग में लायें जाते हैं।
यह एक सोचनीय प्रश्न है की जहां दूसरे देश हिंदी भाषा को अपना रहे हैं लिख रहे हैं, पढ़ रहे हैं,वहीं हमारे देश में यह दोयम दर्जे की बनी हुई है। अंग्रेजी बाहर से आकर रानी बनी हुई है और हमारे देश की रानी बेगानी बनी हुई है। देश के नेतृत्व में मजबूत इच्छाशक्ति और दृढनिश्चय के अभाव के कारण आज भी देश की व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, यहां तक कि देश की सबसे बड़ी पंचायत में भी अंग्रेजी का बोलबाला है। 
हमारे देश के लोगों के दिमाग में अंग्रेजी का भूत इस कदर सवार है कि अंग्रेजी बोलने वाले को वह बहुत श्रेष्ठ समझते हैं और बढ़िया ब्याकरण सम्मत हिंदी बोलने वाले विद्वान हो कमतर आंकते  हैं। यदि हम देश की न्यायपालिका की बात करें तो उसके भी कामकाज की भाषा आज भी अंग्रेजी ही है, जिस व्यक्ति का मुकदमा लड़ा जा रहा होता है, वह ही नहीं जान पाता कि दोनों पक्ष के अधिवक्ता न्यायाधीश के सामने क्या कह रहे हैं, वह बस मूक दर्शक और पेशी पर हाजिरी लगाने वाला पुतला भर होता है। मुकदमों के निर्णयों को जानने के लिए सामान्य आदमी को अनुवादक की आवश्यकता पड़ती है,तब वह जान पाता है कि क्या लिखा गया है। आजादी के इतने सालों बाद भी हमारे देश में कुछ अपवादों को छोड़कर दवाओं के नाम अंग्रेजी में ही लिखे जा रहे हैं, और अंग्रेजी भी उस तरह की कि उन नामों को केवल डाक्टर और मेडिकल स्टोर वाले ही पढ़ पाते हैं।
किसी भी स्थापित व्यवस्था को बदलने में कुछ कठिनाइयां जरूर सामने आती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि उनका कोई समाधान न हो। इसी तरह हिन्दी में कामकाज शुरू होने पर भी कुछ कठिनाइयां होना स्वाभाविक हैं, लेकिन ऐसा नहीं कि उनका कोई समाधान नहीं है। विश्व के तमाम ऐसे देश हैं जिन्होंने अंग्रेजी को ढकेल कर अपने देश से बाहर कर दिया है और अपने देश की भाषा में हर पाठ्यक्रम को तैयार करके अपनी भाषा में विज्ञान, चिकित्सा और तकनीकी तक की शिक्षा दे रहे हैं लेकिन एक हम हैं कि अपने वोट बैंक के चक्कर में अपने देश की मातृभाषा का दिवस मनाने में खूब गर्व की अनुभूति करके फूले नहीं समाते हैं। 
हमारे देश में जब तक कोट, पैंट और टाई  संस्कृति जिंदा रहेगी, तब तक हमारी मातृभाषा हिंदी कभी भी राष्ट्र भाषा और जीवन में आम जन की भाषा नही बन सकती है। हमारे देश में हिंदी को अपनी राष्ट्रभाषा बनने में टाई संस्कृति सबसे बड़ी बाधा है। जिस दिन हमारे देश की कार्यालयी वेशभूषा धोती-कुर्ता, गमछा और साड़ी हो जायेगा, उस दिन हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी को माथे की विंदी बनने से कोई नहीं रोक सकता। 
यदि आप अपने आसपास नजर दौड़ाएं और देखें की आजादी के बाद खुलने वाले स्कूलों में हिंदी माध्यम के कितने स्कूल खुले हैं, तो यह संख्या आप उंगलियों पर गिन सकते है। वहीं दूसरी ओर अंग्रेजी माध्यम के स्कूल बरसात में उगने वाले कुकुरमुत्ते की तरह हर गली मुहल्ले में खुलते जा रहे हैं और कार्यालयों टाई पहनकर बैठे अधिकारी धडल्ले से मान्यता प्रदान कर रहे हैं। हिंदी की दुर्दशा के पीछे  हमारी सरकारों का भी हाथ कम नहीं है। आज ज्यादा वोट लेने की होड़ में, गरीब तबके का वोट हथियाने के चक्कर में देश के प्राथमिक स्कूलों में भी अंग्रेजी पढ़ायी जाने लगी है। जबकि होना यह चाहिए था कि अंग्रेजी माध्यम से खुलने वाले स्कूलों पर रोक लगाई जाए।
हमें अपनी आत्मा को जागृत करने के लिए भारतेंदु हरिश्चंद्र सिंह जी की लिखी हुई पंक्तियों को याद करना होगा, अपनी आत्मा को जागृत करना होगा, अपनी जननी जन्मभूमि के दायित्व को निभाना होगा, जिससे कि विश्व हिंदी दिवस मनाने की भविष्य में आवश्यकता न पड़े और हिन्दी जन जन के माथे की विंदी बने और लोग देश विदेश में हिंदी को पढ़, लिख और बोलकर लोग गर्व की अनुभूति करें -
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। 
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को सूल।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।
- हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश   फोन नंबर – 7087815874

Share this story