लिखें और मन स्वस्थ रखे - ऊषा जैन शीरी

 
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utkarshexpress.com - लेखन एक थैरेपी है। ये मन में छुपे ज्वालामुखी को फूटने  से बचाता है। इस तरह मन का गुबार निकालकर यह मन को शांत करता है। इतना ही नहीं, यह तनाव कम करके मस्तिष्क को स्थिरता प्रदान करता है।
संबंधों के सुधार के लिए भी लेखन उपयोगी है। आप अपने जज्बात लिखकर रख सकते हैं या अगर आपने किसी को हर्ट किया है, आप बाद में अपनी गलती महसूस कर पश्चाताप करते हैं, लेकिन सामने जाकर माफी मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाते तो आप इसे लिखकर दे सकते हैं।  दिल से मांगी गई माफी असर जरूर करती है।
यह जीवन आसान बनाती है। ये बिल्कुल ध्यान की तरह है। लिखते समय आप खुद का सामना करते हैं। इंट्रॉस्पेक्शन करके अपनी कमियां, कमजोरियां जान सकते हैं। यह स्वयं को समझने की एक आध्यात्मिक क्रिया है। इट्स लाइक गोइंग टू टेंपल, आप आराधना कर रहे होते हैं।
लेखन एक अनुशासित क्रिया है। यह आपको स्वयं और आपके संबंधों को समझने में सहायता करती है। यह आपके हृदय को खुलकर अभिव्यक्त होने का मौका देती है। मानव मनोवृत्ति को समझने में सहायक होती है। मानव मनोवृत्ति जो कि कब, कहां, क्या मोड़ ले यह कोई नहीं जानता। इसकी गहराई और विविधता का कोई ओर-छोर नहीं। इसे समझ पाने की उत्सुकता हर व्यक्ति में होती है, लेकिन एक जीवन इसके लिए बहुत छोटा है।
दुनिया में दुख का कारण ही यह है कि यहां सबकुछ हमारी मर्जी का नहीं होता। ऐसे में दुख और परेशानी से बचने के लिए लोग पलायनवादी बन जाते हैं, जो कि सही चॉइस नहीं है। लेखन भी एक तरह का पलायन है,लेकिन इसे हम सकारात्मक पलायनवाद का नाम दे सकते हैं।
यहां व्यक्ति पूरी तरह अपनी मर्जी का मालिक होता है। यह अपने आप में एक कॉन्फिडेंस गिविंग सिचुएशन होती है। आप किसी के प्रति जवाबदार नहीं हैं सिवाय अपने।
सच, कलम से बढ़कर दोस्त नहीं, यह सिर्फ देती है बगैर बदले में कुछ लिए।
वे बहुत ही भाग्यवान हैं, जिन्हें लिखने का हुनर जन्मजात मिला होता है। म्यूजि़क की तरह यह भी खून में होता है। हां, कलम के अलावा अनपढ़ भी लेखकीय गुण लिये हो सकते हैं।
लेखन का साथ एक निरापद सुखदायक साथ है। यहां न किसी के ताने, कटाक्ष व हर्ट करने वाली, अपमानित करने वाली बातें हैं। सबकुछ अच्छा ही अच्छा आपका कंफर्ट जोन है यहां। लेकिन इतना सब होने के बावजूद एक खटका है और वो है आपके इगोइस्ट अहंकारी कॉम्पलेमेंट बनने का। अक्सर लेखकों के लिये कहा जाता है कि उन्हें सिर्फ अपनी तारीफ अच्छी लगती है। ठीक वैसे, जैसे फेसबुक, सोशल मीडिया पर लोग अपनी बीन बजाते नज़र आते हैं। इस चक्कर में वे अपनी छोटी से छोटी बचकानी बातें या घर-परिवार के साथ इंटरएक्शन की पर्सनल बातें शेयर करके लोगों को बोर भी कम नहीं करते। आपका 'मैं' 'मेरा'पर जोर कम रहे तो अच्छा है। (विभूति फीचर्स)

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