ये जो कुछ 'ई’ है वह ही सदा साथ है (व्यंग्य) - विवेक रंजन श्रीवास्तव

 
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Utkarshexpress.com - पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम्। कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम्।।
अर्थ यह है कि पुस्तक में रखा ज्ञान  तथा दूसरे के हाथ में दिया गया धन, ये दोनों ही जरूरत के समय हमारे किसी भी काम के नहीं होते
यह चाणक्य के समय की बात थी, जो तब शाश्वत सत्य रही होगी।
अब इस नीति में अमेंडमेंट की आवश्यकता है। मोबाइल हाथ में हो, और इंटरनेट हो तो गूगल का ज्ञान और ई बटुए का धन ही नहीं, ई मेल में पड़े रिफरेंस, डिजिटल डाक्यूमेंट, फोटो गैलरी के फोटो, कांटेक्ट लिस्ट के नंबर, एड्रेस, बैंक एकाउंट, सब कुछ काम का होता है। बल्कि यूं कहना ज्यादा सही है कि जो कुछ ई है,  आज वह ही सोते, जगते, उठते बैठते, घर बाहर, हर कहीं सदा साथ होता  है ।
देश विदेश की यात्रा करते हुए न तो सारे सहेजे हुए फिजिकल डाक्यूमेंट्स और न ही एल्बम तथा विजिटिंग कार्ड्स होल्डर लेकर चल पाते हैं न ही पास बुक और चैक बुक किसी काम आते हैं ।
आवश्यकता  इंस्टेंट होती है, तब ई डाक्यूमेंट्स एक सर्च पर खुल जाते हैं । दुनियां में कहीं भी हों नेट बैंकिंग ही रूपयों के लेन देन में काम आती है। खुल जा सिम सिम के जप की तरह पासवर्ड डालते ही एप ओपन हो जाते हैं और वह सब जो ई है न वह सेवा में हाजिर मिलता है। याददाश्त में पासवर्ड गुम भी हों तो मोबाइल आपका चेहरा देखकर खुल जाता है और स्कैनर पर फिंगर प्रिंट्स लगाते ही  आप मनचाही वेबसाइट खोल पाते हैं।
मुझे तो लगता है कि ई ईश्वर सा ही है जो सर्व व्यापी है। ईश्वर की कल्पना स्वर्ग में होने की  है । स्वर्ग की परिकल्पना बादलों के पार कहीं आकाश में की गई है। ये जो सदा साथ रहने वाला ई है वह भी क्लाउड स्टोरेज में रहता है। आप कहीं भी हों, क्लोज सर्किट कैमरों की मदद से   घर दफ़्तर जहां चाहें पहुंच जाते हैं। कैमरों के क्लाउड स्टोरेज से घर बाहर के बीते हुए पल भी फिर फिर देख सकते हैं।
इधर जूम या गूगल पर वर्चुअल सेमिनार खत्म होता है और क्लिक करते ही ई सर्टिफिकेट जनरेट होकर मेल बाक्स में हाजिर हो जाता है।
हर चैट बोट पर कोई ई सहायक ईवा, दिया, सिया, 24 घंटे सेवा में समर्पित है।
ई वीजा, ई पासपोर्ट, ई सर्टिफिकेट, ई कामर्स, ई पत्रिका, ई अखबार, ई बुक्स, ई राइटिंग, और ई रेटिंग, ई वोटिंग वगैरह वगैरह है ।  जमाना ई का है, पर ई  डेटिंग से जनरेटेड दिल की अहसासी फाइल अभी भी भौतिक स्पर्श की ही भूखी है। (विभूति फीचर्स)

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