गीत - जसवीर सिंह हलधर

 
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धूप के डेरे उठे अब दून से,
डोलियां बरसात की आने लगी।

चल पड़ी देखो हवायें सिंधु से,
शुष्क मौसम अब रसीला हो गया।
मेघ नगपति शीश टकराने लगे,
चोटियों का गात गीला हो गया।
रंग धरती का हरा होने लगा,
आसमां में नित घटा छाने लगी।
धूप के डेरे उठे अब दून से,
डोलियां बरसात की आने लगी ।।1

रूप बदले बादलों का कारवां,
आह क्या छायी अनौखी सी छटा।
चाँद तारों से मिचौली खेलती,
घूमती है चाँदनी में इक घटा।
फिर सुबह रवि को ढकेगी देखना,
सात सुर की रागनी गाने लगी।
धूप के डेरे उठे अब दून से,
डोलियां बरसात की आने लगी ।।2

चाल नदियों की बदलती दिख रही,
एक दूजी पर लहर चढ़ने लगी।
नृत्य भँवरी बन बिगड़ती कर रही,
आब ले आगे नहर बढ़ने लगी।
धान का रोपण सुचारु चल रहा,
गंध मांटी की गजब ढाने लगी।
धूप के डेरे उठे अब दून से,
डोलियां बरसात की आने लगीं ।।3

बादलों का क्रोध भी बढ़ने लगा,
अब पहाड़ों की तरफ घिरने लगे।
झोंपड़ी डरने लगीं हैं गांव की,
बिजलियों के चाप भी गिरने लगे।
कोई भी मौसम गरीबों का नहीं,
बाढ़ "हलधर" खेत को खाने लगी।
धूप के डेरे उठे अब दून से,
डोलियां बरसात की आने लगी ।।4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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