नारी हूँ = डौली कुमारी

 

नारी हूँ = डौली कुमारी

नारी हैं आज की
तोड़ दो सारी बेड़ियां,
बंधन समाज की ।
घुट-घुट के हम क्यों जिए !
नारी हैं आज की ।
पुरूषों के पैरों तले रौंदी जाऊं क्यों ?
अरे, मैं भी तो खुलकर सांस लूं,
मैं भी जीवन जिऊं ।
क्या मेरे दिल में अरमान नहीं ?
या फिर जिस्म में जान नहीं ?
कान खोलकर सुन लो दुनिया,
घर सजाने का मैं सामान नहीं ।
क्यों बनूं मैं माता सीता,
क्यों दूं अग्नि परीक्षा हरदम ?
अब ठान लिया है, डंट कर रहेंगे,
जब तक दम में है आखिरी दम ।
फुंक दिया है शंख मैंने,
घड़ी है अब शंखनाद की ।
घुट-घुटकर हमें नहीं जीना ।
नारी हैं हम आज की ।
तोड़ दो सारी बेड़ियां,
बन्धन समाज की ।
:- डौली कुमारी,

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