मेरी सखी सरिता (लघु कथा) = रूबी गुप्ता
हम लोगो ने कक्षा नवीं मे एक साथ नामांकन कराया था| लेकिन विद्यालय अलग अलग था| सुबह-सुबह हम एक साथ ट्यूशन पढ़ने जाते थे| सरिता मुझे प्रतिदिन बुलाने घर आती थी| दूध सा सफेद रंग और मन दोनों था उसका |
आते ही आवाज लगाती ओ लूबी चलो देल हो लहा है| और मेरे पापा उसकी बातों को उसी तरह तोतली आवाज मे दुहराते, सरिता शरमाते हुए थोडा़ गुस्सा करती| रोज धमकी देती कल से मै नही आउंगी चाचा मुझे लिगाते है| और मै जोर जोर से ठहाके लगाकर हँसने लगती| पढाई में वो मुझसे थोडी कमजोर थी तो मेरे सारे नोट्स को ले जाती और लिखने के बाद वापस करती| माँगने पर गुस्सा करती , इसलिए मै उसके वापस करने का इन्तज़ार करती| मुझे अच्छे से याद है कैसे वह एक हाथ से साइकिल का हैण्डल पकडे दूसरे हाथ से कुछ न कुछ मूँह मे डालकर खाती रहती| और कभी कभी मुझे भी देती लूबी खाओ| उसकी तोतली आवाज मुझे बहुत भाँती| रविवार को भी सरिता मेरे घर आती थी| हाव भाव बिलकुल बच्चे जैसा| हाईस्कूल के परीक्षा के बाद हम दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ने जाते| कभी साइकिल से कभी टैक्सी से| बेचारा टैक्सी वाले भी परेशान हो जाते हमारी बकबक से| और हँसकर बोलते अरे दीदी जी बात बस्ता मे भरकर रख लो कॉलेज में जाना तो निकाल कर बतिया लेना| मगर हम कहाँ मानने वाले| दो साल में हम दोनो एक दूसरे के बहुत करीब हो गये| छुटटी मे भी हम लोग एक दूसरे के घर जाते साथ खाना खाते और जी भर कर बाते करते| उसकी छोटी बहन मेरी छोटी बहन के साथ पढ़ती थी| तो दोनो बहने खबरी का काम करती| कभी कभी हम लोग डाँट भी खाते कि कैसे ससुराल में रहेगी दोनो| मम्मी कहती एक गाँव मे शादी कर देंगे | कभी कहते अगर एक बिरादरी होता तो दोनो को एक ही घर मे ब्याह देते| हम लोग हद के बेशरम रोज बहुत बाते सुनते , और करते वही जो अच्छा लगता| इण्टर की पढाई के बाद मै स्नातक की पढाई करने दूसरे शहर चली गयी, महिने दो महिने मे जब घर आती सरिता से मिलती| हम लोगों ने एक साथ बहुत सारे फोटो खिचवाई | स्नातक के पढाई के बाद मेरी शादी हो गयी और मै अपने ससुराल चली आयी | जब दो वर्ष बाद वापस मायके गई तब पता चला कि सरिता की भी शादी हो गयी| तब से अब तक मै सरिता से मिलने की कोशिश करती | कई बार उसकाे बात करने का मन होता हैं| पता नही कब मिलूगी और वो मुझे लूबी कहकर मेरे गले लग जायेगी| सरिता मेरी प्यारी सखी एक बार फिर हम साथ साथ कुछ पल बिताये सुनहरे सपनों को एक दूसरे से बताकर वैसे ही ठहाके लगाने लगे| आज भी सरिता का नाम आते ही उसके साथ बिताये पल आँखो के सामने प्रतिबिम्बित होने लगते है| काश कि फिर कभी हम दोनो हद तक मस्ती करते| बाते करते और वो साइकिल की सवारी के साथ जी भर मस्ती करते| = रूबी गुप्ता कुशी नगर , उत्तर प्रदेश
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