जाफ़रानी इश्क = किरण मिश्रा

 

जाफ़रानी इश्क = किरण मिश्रा

 

ज़िन्दगी को हादसों से तोलता है मन,
जब कभी अन्दर ही अन्दर डोलता है मन।

उम्र की बहती नदी में डूब जाने के लिए
हँसते-हँसते अपनी दिल को खोलता है मन।

सच तो है ये ज़िन्दगी की भीड़ में पहले
झूठ को सच के बराबर तोलता है मन।

खूबसूरत अश्क़ पलकों पर ठहरते हैं ज़रूर,
जब कभी यादों की गठरी खोलता है मन।

शाम को घंटों अकेले,तुझको सुनने के लिए
अब सिर्फ़ अपने आप से ही बोलता है मन।।

= किरण मिश्रा “स्वयं सिद्धा” , नोयडा

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