झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (जरा याद उन्हें भी कर लो )==दीपा संजय”*दीप
हम भारत भूमि की संतान हैं उस भारत भूमि की जो वीरों की वीरगाथाओं से भरी हुई है यहां का बच्चा-बच्चा वीरों की गाथाएं सुनाता है झाँसी की रानी की वीरता की कहानियां मांएं बच्चों को लोरी के रूप में सुनाती हैं “बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।”
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को वाराणसी में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में पिता मोरो ताम्बे और माता भागीरथी बाई के घर में हुआ था।
लक्ष्मी बाई अन्य लड़कियों की तुलना में अधिक स्वतंत्र थीं कम उम्र में ही उन्हें निशानेबाज़ी, तलवारबाजी और घुड़सवारी अच्छी तरह से आ गई।
रानी लक्ष्मी बाई का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर राव नेवालकर से मई 1842 को हुआ।सन 1851 में रानी लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम दामोदर राव रखा। पर कुछ कारण वश 4 महीने बाद उसकी मृत्यु हो गयी।
पुत्र की मृत्यु के दुख से दुखित नवम्बर 1853 में महाराज की भी मृत्यु हो गयी। महाराजा ने मृत्यु पूर्व रिश्तेदार भाई के पुत्र जिसका नाम आनंद राव था, उसका नाम दामोदर राव रख कर गोद लिया। उस समय ब्रिटिश शासन को कोई आपत्ति ना हो इस लिए यह कर उन्होंने ब्रिटिश अफसरों के मौजूदगी में पूर्ण किया।
लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उसे उत्तराधिकारी नहीं माना।
जब झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई को इसके विषय में पता चला तो वह रो पड़ी और उन्होंने कहा – ‘मैं झाँसी को नहीं दूँगी’। उसके बाद महारानी लक्ष्मी बाई ने लन्दन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया
उन्होंने झाँसी को ईस्ट इंडिया कंपनी को न देने का संकल्प लिया व अपनी सेना संगठित करने लगी। साथ ही उन्होंने अपने राज्य का उत्तरदायित्व भी संभाला।
रानी लक्ष्मी बाई घुड़ सवारी में निपूर्ण थी और उन्होंने महल के बीचों बीच घुड़ सवारी के लिए अपने लिए जगह बनाई और घुड़ सवारी का अभ्यास आरम्भ कर दिया उनके पास तीन घोड़े थे जिनके नाम थे – सारंगी, पवन, और बादल। सन 1858 के समय किले से निकलने में घोड़े बादल की अहम भूमिका थी।
झाँसी के महल को ना छोड़ने के कारण झाँसी ब्रिटिश शासन के लिए विद्रोह का केंद्र बन गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी झाँसी के महल, किले पर कब्ज़ा करना चाहती थी। रानी लक्ष्मी बाई इस बात को पहले से ही जानती थी इस लिए उन्होंने अपनी मजबूत सेना तैयार करनी शुरू कर दी थी। इस सेना में महिलाओं को सेना में लिया गया था और उन्हें भी युद्ध के लिए तलवारबाज़ी, घुड़सवारी का प्रशिक्षण दिया गया था।
जनवरी 1858 में ब्रिटिश सेना ने झाँसी पर आक्रमण किया। झाँसी का युद्ध दो सप्ताह तक चला परन्तु अंत में ब्रिटिश सेना ने झाँसी के राज्य को कब्ज़े में करके घेर लिया। मजबूर हो कर झाँसी की रानी को पुत्र दामोदर राव को वहां से लेकर किले को छोड़ना पड़ा।
किले को छोड़ने के बाद रानी लक्ष्मी बाई ने तात्या टोपे की सेना से मिलकर ग्वालियर के एक किले को कब्ज़े में कर लिया।
17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु हो गयी और वे स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में आगामी पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गईं-,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,दीपा संजय”*दीप