सुनो न = विजया सिंह

 

सुनो न = विजया सिंह

सुनो न!
वो जो चम्पई रंग की
पहनी थी साड़ी तुमने
देखना कहीं उसके ही
आँचल की गिरहों में
तो नही बंधा है मेरा वो
बावरा मन!
सुनो!
वो जो अगर वहां
न मिले तो देखना
कहीं उलझ के तो
नही रह गया न
तुम्हारे उस हीरे वाले
लौंग के लश्कारे में
दमकता मेरा मन!
या फिर!
वो जो चिपकाया है
तुमने मेरे पसंद की
गोल सी लाल बिंदी
ठीक अपने दोनों भवों के बीच
उसमें तो नही उलझा के
रख दिया है मेरा बैचेन मन!
सुनो!
जो वो कहीं मिले तो
खोंस उसे रख देना
मेरे कुरते की ठीक
पीछे वाली जेब में
और कर देना
आरी तिरछी ही सही
इक सिलाई ठीक इसके उपर
ताकि जीवन की आपाधापी में भी
कभी भटके नही तेरे से इतर
कहीं मेरा दीवाना मन!
= विजया सिंह , हैदराबाद

Share this story