दीवाली का त्योहार = बजरंग लाल केजडी़वाल

 

दीवाली का त्योहार = बजरंग लाल केजडी़वाल

दीपावली हमारे देश में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा और मुख्य त्योहार है । असल में यह एक त्योहार न होकर कई त्योहारों की पूरी एक श्रृंखला ही है जो कई अलग-अलग तरीकों से मनाया जाते हैं जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से शुरू होकर शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि तक लगातार पांच दिनों तक चलते हैं । इसबार ये त्योहार दिनांक 12.11.2020 वार गुरुवार से लेकर आगामी दिनांक 16.11.2020 वार सोमवार तक मनाए जाएंगे। इस दौरान मनाए जाने वाले त्योहारों की श्रृंखला में धनतेरस, नरक चतुर्दशी या रूप चौदस, दीपावली, गोवर्धन दीपावली तथा यम द्वितीया, भैया दूज या चित्रगुप्त पूजन के रूप में मनाए जाते हैं । इस प्रकार इन दिनों सब तरफ रौनक का, हर्षोल्लास का, खुशी का और त्योहारों की चहल-पहल का बहुत ही खुशनुमा माहौल रहता है ।
आइये दीपावली त्योहार के अन्तर्गत मनाए जाने वाले विभिन्न पर्वों के विषय में थोडा़-थोडा़ जानते हैं –
(क) धनतेरस : त्रयोदशी के दिन को हम सब नये गहने, बर्तन या अन्य कोई मूल्यवान वस्तु का क्रय करके धनतेरस के रूप में, समुद्र मंथन के दौरान हाथ में अमृत कलश लिए भगवान् धन्वंतरी के प्रादुर्भाव के दिवस के रूप में तथा यमराज की पूजा हेतु दीपदान के रुप में मनाते हैं और माता लक्ष्मी से धन प्राप्ति की, भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के प्रणेता मानकर आरोगय प्राप्ति की और यमराज से अकालमृत्यू के दुःख से बचाव के लिए प्रार्थना करते हैं । इस प्रकार एक त्रयोदशी के दिन को ही हम कई त्योहारों को एकसाथ मनाते हैं ।
(ख) रूप चौदस और नरक चतुर्दशी : चतुर्दशी को हम रूप-चौदस और नरक चतुर्दशी के रूप में मनाते हैं । इस दिन बाल, युवा, स्त्री, पुरुष, सभी खूब मल-मल कर नहाते और सजते सजाते और श्रृंगार करते हैं तथा शाम को यमराज को दीपदान देकर नरक की यातना से बचाने की प्रार्थना करते हैं । ऐसी मान्यता है कि इस दिन यमराज भगवान् और धरमराज भगवान् की पूजा करने पर नरक की यातना नहीं भोगनी पड़ती है । एक और मान्यता के अनुसार कृष्ण भगवान् द्वारा नरकासुर का बध कर लोगों के त्रास को दूर कर दुःखौं से छूटकारा पाने की खुशी में भी इसे नरक चतुर्दशी की दीवाली के रूप में मनाते हैं ।
(ग) शुभ दीपावली एवं काली पूजा : अमावस्या के दिन को मुख्य दीपावली के पर्व के रूप में मनाते हैं और घर की सुख-समृद्धि, बरकत और धन प्राप्ति की कामना लिए अष्टलक्ष्मी स्वरूपा और धन की देवी विष्णुप्रिया माता महालक्ष्मी जी की विशेष पूजा, अर्चना और अभ्यर्थना करते हैं और माता लक्ष्मी को मनोकामना पूर्ण करने केलिए आशीर्वाद देने की विनय करते हैं । इसी दिन कुछेक प्रांतों में लोग मां काली की भी पूजा बडी़ धूमधाम से करते हैं ।
(घ) गोवर्धन दीवाली : दीपावली के दूसरे दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकम तिथि को गोवर्धन दीवाली के रूप में मनाते हैं । इस दिन मां प्रकृति स्वरूप गोवर्धन पर्वत की और गौमाता की पूजा करते हैं और आशीर्वाद ग्रहण करते हैं । हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है और खेती-बाड़ी और गौपालन यहां के जीवकोपार्जन के मुख्य कार्य और स्रोत हैं। कृषि कर्म में बैलों की और गाय की अहम भूमिका होती है और इनके भोजन की जरूरत पूरी करने केलिए तथा गोवंश की वृद्धि के लिए ऐसे बहुत बडे़ भू-भाग की जरूरत पड़ती है जहां बहुत अधिक मात्रा में चारा (घास, पेडो़ के पत्ते, आदि) उपलब्ध हों और वह स्थान घनी आबादी के इलाकों से दूर हो और ऐसा स्थान तो पर्वतों की तलहटी में जंगलों के आसपास तथा मैदानी इलाकों में ही मिलता है तो इन सबकी पूर्ति करने में ताजी घास और हरियाली से भरपूर पर्वतों और पहाडों को सहायक मानकर और धरती माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की भावना से पर्वत (गोवर्धन) और गौमाता की पूजा की जाती है ।
(ङ) यम द्वितीया, चित्रगुप्त पूजन : तत्पश्चात् द्वितीया तिथि को भैया दूज और चित्रगुप्त पूजन के रूप में मनाते हैं । इसके पिछे एक बहुत ही रोचक कथा जुडी़ है कि द्वितीया तिथि के दिन यमराज अपनी बडी़ बहन यमुना (यमुना नदी) के निमंत्रण पर उनसे मिलने धरती पर आते हैं और यहां आकर अपनी बहन के साथ कुछ समय बिताते हैं । भोजन, आदि करते, कुशल क्षेम आदि पूछते, बताते हैं और अंत में उनकी बडी़ बहन उन्हें ढेर सारा ऊपहार, वस्त्र आदि भेंट स्वरूप देकर विदा कराती है । विदा होते समय यम देव अपनी बहन से कुछ मांगने को कहते हैं तब यमुना अपने भाई यम देव से कहती है कि तुम मेरे पास मिलने आए मेरे लिए यही बहुत खुशी की और संतुष्टि की बात है, मुझे और कुछ नहीं चाहिए । तब यम देव भी कहते हैं कि मुझे भी आपसे मिलकर बहुत आनन्द आया । अत: बिना कुछ दिए तो मुझे संतोष प्राप्त नहीं होगा । तब यमुना ने यम देव से वरदान मांगा कि जो भी भाई आज के दिन अपनी बहन के यहां उससे मिलने और कुशल क्षेम पूछने आए उसको यमपाश का भय नहीं व्यापे । उसकी गति नरकगामी न हो तथा उसे सीधे स्वर्ग ही मिले जिसे यम देव ने तत्काल तथास्तु कहकर स्वीकार कर लिया । तभी से आज का दिन यम द्वितीया या भैया दूज के रूप में मनाया जाने लगा ।
इसके अलावा द्वितीया तिथि को चित्रगुप्म जयन्ती के रूप में भी मनाते हैं। दीपावली के दिन पूजन के समय लक्ष्मी माता के सामने लोग जो अपने बही खाते, कलम दवात आदि को भी रखकर उन सबकी भी पूजा करते हैं वे सब भी दीपावली के दिन से ही पूजा में ही रखी रहतीं हैं जिन्हें चित्रगुप्त जी (यमराज के लेखाकार – पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखनेवाले) की जयन्ती के दिन चित्र गुप्त की पूजा करने के पश्चात् यानि द्वितीया तिथि को ही फिर से काम में लेना शुरू करते हैं ।
दीपावाली पर्व के विषय में एक और मान्यता प्रचलित है कि यमराज (यम देव) त्रयोदशी के दिन ही अपनी बडी़ बहन यमुना से मिलने उसके घर धरती पर आते हैं और उनकी बहन उनकी खूब आवभगत करती है और पूरे पांच दिन वहां रहकर यमदेव लौटकर यमपूरी आते हैं । यम देव को जब यमूना का बुलावा आया तो वे इतने प्रसन्न हुए कि प्रसन्नता के मारे खुश होकर सभी नरक के बंदियों को बंधन मुक्त कर क्षमा कर दिया और ऐलान कर दिया कि जब तक वे लौटकर नहीं आते तब तक किसी भी मृतात्मा को नरक में न लाया जाए, बल्कि सबके पापों को क्षमाकर सीधा स्वर्ग भेज दिया जाए। इसीसे इन पांच दिनों का महत्व बहुत बढ़ गया और सब यम देव की भी पूजा करने लगे।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि दीपावली हमारे देश का प्रमुख और सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है जो कई दिनों तक और अलग-अलग रूप में धूमधाम से मनारा जाता है ।
किन्तु इस बार इन त्योहारों को मनाते समय हमें अतिरिक्त सतर्कता, सावधानी और एहतियात बरतनी होगी क्योंकि इस समय चहुंओर एक भीषण महामारी का प्रकोप हम सब पर बरपा हुआ है और हम सब बहुत ही डरे हुए हैं । फिर भी त्योहार तो हमें मनाने ही हैं और हम मनाएंगे भी अवश्य, बस थोडी़ समझदारी और संयम रखेंगे । = बजरंग लाल केजडी़वाल’संतुष्ट’, तिनसुकिया

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