वेदना = ज्योत्स्ना रतूड़ी
Oct 5, 2020, 07:22 IST
वेदना को अनुभव करो तुम, अंतस की आवाज से,
नहीं विषय यह शब्द का ,पीड़ा अनुभव करो ह्रदय से,
हो मनुज गर तुम भी तो, समझो उस व्यथा को
शक्ल सूरत भिन्न है पर , दर्द सबके एक से ।
देह धरा मनुष्य का, कर्म सदृश दानवता ,
वेदना रहित है जो, कृत्य से झलकती क्रूरता,
शर्मसार हुयी मानव जाति आज जिनके कर्म से,
लेशमात्र न मानवीय गुण है बस दिखाते बर्बरता।
संवेदनहीन हैं जो, दया धर्म से भी जो शून्य हैं,
बोझ है इस धरती पर , मानवता पर कलंक हैं ,
देवता भी व्यथित होंगे गढ़ कर उस शरीर को,
समाज से निष्कासित करो दंड के भागी वो हैं।
ज्योत्स्ना रतूड़ी *ज्योति*, उत्तरकाशी ,उत्तराखंड