मनोरंजन
कच्ची नींदों के ख्वाब – ज्योत्सना जोशी

बहुत से सवालों के जवाब नहीं हैं,
बहुत सी खामोशी जेहन में बेताब थी।
और क्या श़र्त रखते राह-ए-इश्क़ में हम,
मेरे ही रहना फ़क़त इतनी सी बात थी।
कागज़ों पर रखे हर्फ़ महज़ किताबी हैं,
जो ज़ाहिर नहीं वो धड़कनों की साज थी।
कच्ची नींदों ने न जाने कितने ख्वाब बुने,
मासूम खयालों की मख़्सूस सी ताब थी।
ख़ुद के भीतर कोई झांकता नहीं यहां,
बेअसर दहलीज़ पर ठहरी आवाज़ थी।
गुज़रे हुए वक्त में वो पुरानी सी जगहें,
पलकों पर रखी तेरे होने की याद थी।
जाते हुए एक कारवां संग हम राह चला,
लौटे तो बहारों की बिछड़न साथ थी।
– ज्योत्सना जोशी , देहरादून