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गीत (अयोध्या धाम) – मधु शुक्ला

चलो अयोध्या धाम जहाँ पर, पावन सरयू बहती है।
मर्यादा पुरुषोत्तम जी की , जीवन गाथा कहती है।
एक पुत्र के कर्तव्यों से , धरा अयोध्या मिलवाती।
श्रेष्ठ सभी संबंधों में यह, मात पिता को बतलाती।
रघुकुल में जननी की आज्ञा, वंदनीय अति रहती है…. ।
भ्रात प्रेम का ज्ञान यहाँ पर , आने वाले पाते हैं।
त्याग क्षमा है रीढ़ सदन की ,सीख साथ ले जाते हैं।
शिक्षा पति पथ अनुगामी की,यहाँ ब्याहता गहती है….।
प्रजा और राजा का रिश्ता , भूमि अयोध्या समझाये।
शासक जनता का सेवक है, नेताओं को बतलाये।
रहे भाव यदि जन सेवा तो , जनता कष्ट न सहती है…..…।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश