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देश की अखण्डता बनाए रखने के लिए आवश्यक है सामाजिक समरता – विवेक रंजन श्रीवास्तव

 

Utkarshexpress.com – प्रश्न है देशों का निर्माण कैसे हुआ ? भौगोलिक स्थितियों के अनुसार लोगों का रहन सहन लगभग एक समान ही होता है। नदियों , पहाड़ों , रेगिस्तानों जैसी प्राकृतिक बाधाओं ने प्राचीन समय में देशों की सीमायें निर्धारित की। इतिहास साक्षी है कि एक ही विचारधारा और धर्म के मानने वाले भी एक ही राज्य के झंडे तले एकजुट होते रहे हैं। विस्तार वादी नीतियों से जब युद्ध राजधर्म सा बन गया तो सेनाओं को एकजुट रखने में भी धर्म का उपयोग किया गया। पिछली सदी में जब दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों का महत्व बढ़ा तो ,विस्तारवादी  युद्धों की वैश्विक भर्त्सना होनी शुरु हुई। पर किंबहुना आज भी देशों के नक्शे  क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति,राष्ट्रों की शक्तिसंपन्नता , वैचारिक और धार्मिक आधारों पर ही तय हो रहे हैं। भारत एक लोकतांत्रिक विश्व शक्ति है। हमारा संविधान हमें धार्मिक स्वतंत्रता देता है। संविधान के अनुच्छेद (25-28) के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वर्णित हैं, जिसके अनुसार नागरिकों को  अंत:करण  और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्‍वतंत्रता, धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्‍वतंत्रता , किसी विशिष्‍ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्‍वतंत्रता तथा धार्मिक शिक्षा संस्‍थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में भारत के हर नागरिक को संविधान द्वारा स्‍वतंत्रता प्रदान की गई है ।

हमारा संवैधानिक स्वरूप धर्म निरपेक्ष है,किंतु फिर भी देश में राजनीति धर्म आधारित ही है। चुनावों में सरे आम धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर वोटों का अंदाजा लगाकर पार्टियां उम्मीदवार तय करती हैं , मीडिया जातिगत वोटो की खुले आम चर्चा करता है पर चुनाव आयोग मौन रहता है ! मुझे लगता है देश में संविधान को गिने चुने लोगों द्वारा आम जनता पर थोपा गया है , यह ठीक रहा क्योंकि संविधान व्यापक रूप से जनहितकारी है , पर जनमानस से ऐसे उदार संविधान की मांग  उठने से पहले ही संविधान बना दिया गया जिसके चलते आम आदमी संविधान के महत्व से अपरिचित है , और इतर संवैधानिक गतिविधियों में संलग्न है। आज जरुरत लगती है कि देश की जनता को संविधान से परिचित करवाने के लिये अभियान चलाया जाये . जिससे आज के युवा नागरिक भी अपने संविधान पर गर्व करें और तद्अनुसार आचरण करें।

कश्मीर से हिंदू पंडितो का विस्थापन , और अब उन्हें पुनः वहाँ बसाने को लेकर राजनीति निरंतर गर्माती रहती है। पूर्वोत्तर के राज्यों में ईसाई धर्म का बाहुल्य है,और विदेशी ताकतें व ईसाई मिशनरियां धर्म के आधार पर वहां एकजुटता बनाकर देश विरोधी संगठन खडे करती रहती हैं। तमिलनाडु में धर्म के आधार पर ही श्रीलंका से सिंहली कनेक्शन रहे हैं ,पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या इसका ही दुष्परिणाम था। केरल में क्रिश्चेनिटी के कारण ही एक ही दल लगातार सत्ता पर बरसों से काबिज बना रहा है। हिंदी बहुल क्षेत्रों की बात की जाये तो धर्म ही नहीं  जाति के आधार पर भी ध्रुवीकरण की तस्वीर साफ दिखती है। राजनीतिक पार्टियां खुलकर जातिगत राजनीति का खेल खेलती हैं।

उत्तर प्रदेश में राम मंदिर के निर्माण को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ा गया, दलितों की अलग राजनैतिक पार्टी ही बन जाये और राजनेताओ द्वारा मुस्लिम तुष्टीकरण से वोट पाने की होड़ लगाई जाये तो राष्ट्रवादी  समझ में यह संविधान का मजाक है जो सरे आम ताल ठोंककर राजनेता उड़ा रहे हैं व आम जनता दिग्भ्रमित है।

धार्मिक दंगे उन्हीं क्षेत्रो में होते हैं जहां किसी एक धर्म या जाति का बाहुल्य है,मुर्शिदाबाद का उदाहरण ताजा है। आबादी की  धार्मिक समरसता व संतुलन  से मिलनसारिता बढ़ती ही है। ऐसा सारे देश में किया जाना जरूरी है।

कश्मीर में हिंदू पंडितों के लिये  सैनिक सुरक्षा में अलग कालोनी बसाने की बात कुछ ऐसी है जैसे वहां के मुसलमान कोई अलग हों ! मैं  2016 में कश्मीर घूम कर लौटा , यद्यपि यह सही है कि मैं वहां टूरिस्ट था और टूरिज्म आधारित व्यवसाय होने के कारण मेरे साथ संपर्क में आये मुसलमानों का व्यवहार हमारे प्रति अतिरिक्त रूप से उदार रहा होगा , पर जब एक ही शहर में रहना हो , साथ साथ जीना हो तो किसी जाति विशेष के लिये बिल्कुल अलग कालोनी बसाने के प्रस्ताव का कोई भी  समझदार व्यक्ति समर्थन नहीं कर सकता। कश्मीर में इस तरह की घटिया राजनीति करने की अपेक्षा वहां स्थाई रुप से इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलपमेंट की आवश्यकता है । सरकारें वहां फोरलेन सड़कें बनवा दें, बिजली व्यवस्था का सुढ़ृड़ीकरण  कर , टूरिज्म के विकास हेतु जरूरी कार्य कर  दें , बाकी सब वहां की जनता स्वयं ही कर लेगी। जब वहां रोजगार के पर्याप्त संसाधन होंगे तो वहां के युवा पढ़े लिखे मुसलमान विस्थापित हिन्दू  पंडितों को ही नहीं हर भारत वासी को वहां अपने साथ बसने देंगे यह बात मैं कश्मीर में वहां के  लोगों से अनौपचारिक चर्चा के आधार पर कह रहा हूं। जैसे प्रयत्न अभी राजनेता कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिये कर रहे हैं उससे तो स्थाई वैमनस्यता और वर्ग संघर्ष को जन्म मिलेगा। देश के अनेक शहरों में भी बंगलादेश से आये हुये शरणार्थियों की  अलग कालोनियां  बनी हुई हैं , मुसलमानों ने या सिंधियों ने अनेक शहरों में क्षेत्र विशेष में अलग कोनो में बसाहट की हुई है। प्रशासन के लोग समझते हैं कि जहां भी इस तरह की असंतुलित आबादी की बस्तियां हैं वहां त्यौहार विशेष या धार्मिक असद्भाव फैलने पर कितनी कठिनाई से ला एण्ड आर्डर मेंटेन हो पाता है। मेरा सुझाव है कि कानून बनाकर जातिगत या धर्मगत आधार पर कालोनियों और बिल्डिंगो में  एक साथ एक ही वर्ग के लोगों के रहने पर रोक लगा देनी चाहिये। इस तरह के आवासीय ध्रुवीकरण की कल्पना तक संविधान निर्माताओं ने नहीं की होगी। वर्ग विशेष के लोग यदि इस तरह की आवास व्यवस्था में स्वयं को सुरक्षित मानते हैं तो ऐसी  परिस्थितियों के लिये विगत 70 वर्षो की राजनीति ही दोषी कही जायेगी।

संविधान निर्माताओं के सपने का सच्चा धर्म निरपेक्ष भारत तभी वास्तविक स्वरूप ले सकता है जब सारे देश के हर हिस्से में सभी धर्मो के लोगों का स्वतंत्र बिखराव हो , यह देश की अखण्डता के लिये आवश्यक है। आशा है राजनेता क्षुद्र राजनीति से ऊपर उठकर देश के दीर्घ कालिक व्यापक हित में इस दिशा में चिंतन मनन और काम करेंगे।अन्यथा नई पीढ़ी के पढ़े लिखे लड़के लड़कियों ने जैसे आज विवाह तय करने में माता पिता और परिवार की भूमिका को  गौंण कर दिया है उसी तरह सरकारों को दरकिनार करके समाज को देश की धार्मिक अखण्डता के लिये स्वतः ही कोई न कोई कदम उठाना ही पड़ेगा।

कश्मीर में ताजा आतंक का  सरकार को जो जवाब देना हो देगी , पर आम जनता का जवाब वहां समरसता से रहने में ही है ।(विनायक फीचर्स)

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