मनोरंजन

बाबा बुलेटप्रूफ: श्रद्धा के पीछे सुरक्षा की फौज – डॉ. सत्यवान सौरभ

 

Utkarshexpress.com – जो संत मोक्ष, आत्मा की अमरता और मृत्यु से भयमुक्त रहने का उपदेश देते हैं, वे स्वयं भारी सुरक्षा घेरे में क्यों रहते हैं?

कैसे आज के आध्यात्मिक गुरु धर्म से अधिक इवेंट मैनेजमेंट में लगे हैं, और सरकारें उन्हें सुरक्षा देकर राजनीति और वोट बैंक साधती हैं। यदि बाबा वाकई मृत्यु को एक भ्रम और आत्मा को अजर-अमर मानते हैं, तो फिर उन्हें सुरक्षा की क्या ज़रूरत? असली संत वही होता है जो सत्य के साथ निर्भय खड़ा हो — न कि सुरक्षा घेरे में छिपा हो।

मोक्ष की बात, मगर मौत का डर: बाबा की सुरक्षा का रहस्य

“बाबा की सुरक्षा: आत्मा अमर है, लेकिन बॉडीगार्ड चाहिए!”

“शरीर नाशवान है, आत्मा अजर-अमर। मृत्यु तो केवल एक परिवर्तन है, उससे भय नहीं करना चाहिए।”

— यह वाक्य किसी आध्यात्मिक प्रवचन से नहीं, बल्कि देश के सबसे चर्चित युवा बाबा, बागेश्वर धाम सरकार धीरेन्द्र शास्त्री के किसी भी कार्यक्रम में बार-बार दोहराया जाता है। लेकिन जिस बाबा की वाणी में मृत्यु के प्रति भयमुक्ति का यह अमृत बहता है, वही बाबा जब Y श्रेणी सुरक्षा में चार थानों की फोर्स, सैकड़ों पुलिसकर्मी, दर्जनों बाउंसर और निजी सुरक्षाकर्मियों से घिरे दिखते हैं, तो आम आदमी की आत्मा चिल्ला उठती है — “बाबा, ये क्या चल रहा है?”

बीते सप्ताह बाबा बीकानेर के पास नोखा क्षेत्र में एक धर्मात्मा उद्योगपति के नव-निर्मित भवन के ‘प्रवेशोत्सव’ में पधारे। धर्म, भक्ति और आडंबर का ऐसा संगम था कि खुद त्रिदेव भी यदि आ जाते तो भीड़ को चीरते हुए मंच तक न पहुँच पाते। बाबा के स्वागत में फूल बरसे, जयघोष गूंजे, और रंगीन अख़बारों में दो-दो पृष्ठों पर उनके दर्शन, उपदेश और सुरक्षा तंत्र का महिमामंडन हुआ।

आत्मा अमर, लेकिन अंगरक्षक जरूरी? –

जिस गुरु की वाणी से मृत्यु का भय मिटाने का दावा होता है, वह स्वयं बुलेटप्रूफ गाड़ियों में चलता है, निजी अंगरक्षकों की सेना रखता है, और सरकार से वाई श्रेणी की सुरक्षा लेता है। क्या मोक्ष के मार्ग पर चल रहे संतों के लिए यह सांसारिक सुरक्षा ज़रूरी हो गई है? अगर आत्मा अमर है, और मृत्यु केवल शरीर का त्याग, तो फिर यह सुरक्षा किससे? असुरक्षा का डर किसका? क्या यह जनता के विश्वास के साथ धोखा नहीं?

बाबा का भय किससे? –

कहा जा सकता है कि संतों को विरोधियों, असामाजिक तत्वों से खतरा हो सकता है। लेकिन यह तर्क खुद बाबा के उपदेशों से खारिज हो जाता है। बाबा कहते हैं — “डर केवल अज्ञानी को होता है। जब ईश्वर साथ हो, तो कोई क्या बिगाड़ सकता है?” फिर, जब भक्तों की भीड़, पुलिस का पहरा और सरकार की छत्रछाया है, तो बाबा को किस ‘मृत्यु’ का भय है?

क्या यह वही बाबा नहीं हैं जिन्होंने प्रयागराज महाकुंभ की भगदड़ में मारे गए लोगों को ‘मोक्षप्राप्त’ घोषित कर दिया था? अगर भगदड़ में मरे तीर्थयात्री स्वर्ग सिधार सकते हैं, तो फिर बाबा को तो इस भीड़ में परमानंद ही मिलना चाहिए!

क्या यह आध्यात्मिकता है या इवेंट मैनेजमेंट? –

किसी साधु का इतने सुरक्षा घेरे में आना अब कोई दुर्लभ दृश्य नहीं रहा। बाबा धीरेन्द्र शास्त्री जैसे ‘इंफ्लुएंसर संत’ अब सत्संग कम और इवेंट ज्यादा करते हैं। स्टेज पर बड़ी एलईडी स्क्रीन, सफेद लाइट, ढोल-नगाड़ों के बीच उनकी एंट्री होती है, और इसके पीछे होती है पूरी ‘प्रोटोकॉल टीम’ — जैसे कोई बॉलीवुड सुपरस्टार पहुंच रहा हो। क्या अब आध्यात्मिकता का मोल लोगों की आस्था से नहीं, बल्कि पुलिस बल और मीडिया कवरेज से तय होगा?

सत्ता और संत का गठजोड़ –

सवाल केवल सुरक्षा का नहीं है। सवाल है कि किस आधार पर एक बाबा को Y श्रेणी की सुरक्षा दी जाती है? क्या देश में ऐसे लोगों की कमी है जिन्हें सच में जान का खतरा है — सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली महिलाएं? परंतु सरकारें चुपचाप संतों को विशेष सुरक्षा देती हैं, शायद इस डर से कि कहीं उनके अनुयायियों की नाराज़गी न झेलनी पड़े। यह सीधा ‘वोट बैंक’ की राजनीति का आध्यात्मिक संस्करण है।

श्रद्धा या अंधभक्ति? –

आखिर में बात आम आदमी की करनी होगी — उस भक्त की, जो तपती दोपहर में घंटों कतार में खड़ा रहता है, बाबा के एक दर्शन की उम्मीद में। जिसे बाबा कहते हैं, “मोह-माया छोड़ो”, लेकिन वही बाबा करोड़ों के दान स्वीकार करते हैं, AC टेंट में बैठते हैं, और सुरक्षा घेरे में प्रवचन देते हैं। क्या यह श्रद्धा है या कोई सुनियोजित भ्रम? क्या यह धर्म है या प्रदर्शन?

व्यंग्य की चोट: –

> बाबा बोले — “मृत्यु से मत डरो, आत्मा अमर है।”

पर खुद चलते हैं, क़िले की तरह सुरक्षा में।

भक्त बोले — “बाबा, हम तो पैदल आए हैं, आशीर्वाद दो।”

बाबा बोले — “पहले सुरक्षा घेरा पार करो!”

समाप्ति से पहले प्रश्न: –

अगर मृत्यु के बाद मोक्ष ही जीवन का उद्देश्य है, और बाबा मार्गदर्शक हैं, तो फिर वे स्वयं मृत्यु से क्यों डरें? क्यों न वह सुरक्षा छोड़, उसी आस्था पर भरोसा करें, जिसका उपदेश देते हैं? या फिर मान लिया जाए कि यह पूरा खेल केवल मंच है — जहाँ भावनाओं का व्यापार होता है, और मोक्ष, माया, मृत्यु सब शब्द भर रह गए हैं।

बागेश्वर बाबा हों या कोई और, जब भी कोई संत आध्यात्मिकता के नाम पर सुरक्षा, वैभव और सत्ता का लाभ लेता है, तो उसके प्रवचनों की पवित्रता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। श्रद्धा को सुरक्षा से नहीं, सत्य से ताकत मिलती है। बाबा यदि वाकई आत्मा की अमरता में विश्वास रखते हैं, तो उन्हें सबसे पहले वाई श्रेणी सुरक्षा का त्याग करना चाहिए — क्योंकि असली संत वही है, जो सत्य के साथ निर्भय खड़ा हो।

“मृत्यु का मर्म और मोक्ष का मेला”

– डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045, मोबाइल :9466526148

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button