मनोरंजन
झुमके – सविता सिंह

ब्लैक ऑक्सिडाइज
वही कान के झुमके,
पहन उसे बस शीशे में
देख रही जँच तो रहा,
उसने अंगूठे तर्जनी मिला
हँसकर जो कह दिया,
तब से मेरे कानों में
झुमके का हो गया घर,
था वो कौन, बेखबर
इशारों में कहकर
न जाने कहाँ चला
देखी भी नहीं नैन भर।
जब जब वो बलखाते हैं
तनिक नहीं वो सुहातें हैं
वो इशारे कर गया कहाँ
रह रह वो भरमातें हैं।
अब जब भी देखें आरसी
वो इशारा करता दिखता है
झुमका दिखे या ना दिखे
बस वह शीशे में दिखता है।
अब हर दिन न जाने क्यों
उसी दुकान पर जाती हूँ,
उलट पलट समानों को
बस उसको ही जोहती हूँ।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर