हे बनवारी कृष्ण मुरारी – क्षमा कौशिक

हे बनवारी कृष्ण मुरारी, धारो चक्र को ।
याद करो तुम अपना वादा, मारो वक्र को।।
घोर हुआ है जुल्म कन्हाई, अब तो आइये।
अत्याचारी को तुम ऐसा, सबक सिखाइये।।
स्वर्ग धरा पर मचता क्रंदन, बहता रक्त है।
पड़ा हुआ निरूपाय तड़पता, तेरा भक्त है।।
पौंछ दिया सिंदूर उजाड़ी, कितनी जिंदगी।
हाथ जोड़कर श्याम तुम्हारी करते बंदगी।।
बढ़ा हुआ मद व्यभिचारी का, बढ़ते हौसले।
खून बहा कर ये छिप जाते, अपने घोंसले।।
चला चक्र अब ऐसा प्रभुवर, खोजे कब्र से।
कहाँ छुपे हैं कायर पामर, देखे अब्र से।।
बच न पायें अत्याचारी, अब संहार हो।
नरसंहार किया जो उसने,अब प्रतिकार हो।।
काँप उठे रुह उनकी माधव, ऐसा दंड हो।
करो शस्त्र की ऐसी वर्षा, युद्ध प्रचंड हो।।
अब तक क्षमा किया है हमने,अब ललकार हो।
उठे न सदियों तक सिर उनका, वह यलगार हो।।
पूर्ण करो जो वचन दिया था तुमने सारथी।
आस लगाकर देख रही माँ तुमको भारती।।
– डॉ क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड